कविता

निराश क्यों हो तुम ?

निराश क्यों हो तुम ?
क्या हलचल है हृदय में
खुद से ही युद्ध करके
हार बैठे हो क्या तुम ?
क्या है हार क्या जीत
सर्वनाश है इसका मीत
रक्तरंजित हो रही धरा
न कोई जीतता न कोई हारता
निराश क्यों हो तुम ?
सैनिकों की लाशों का ढेर
मृत मां से लिपटे नौनिहाल
युद्ध में कोई नहीं है लिहाज
निराश क्यों हो तुम?
विध्वंसक युद्ध का घोष
यूँ ही चलता ही रहेगा
निराश न हो तुम….
थाम कर कलम तूं
लिख शान्ति के तुम गीत
रहे विश्व भ्रातृत्व की रीत
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333