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सोचो-समझो-करो

पता नहीं यह सत्य है कि हमारा सपना, पर दशहरे के अगले दिन 16 अक्तूबर को सुबह-सुबह जब हमने ”अपना ब्लॉग” खोला, तो हमें एक आदरणीय ब्लॉगर के एक छोटे-से, लेकिन सारगर्भित ब्लॉग की झलक दिखाई दी, जिसमें हमें विजयदशमी पर अपने मन पर विजय पाने की बात कही गई थी. उसमें एक पाठक की अभद्र भाषा में लिखी हुई बेहद नकारात्मक प्रतिक्रिया भी दिखाई दी. हमने सोचा कि हम अपना ब्लॉग प्रकाशित कर इस पूरे ब्लॉग को ध्यान से पढ़ेंगे. थोड़ी देर बाद हमने उस ब्लॉग को पढ़ने के लिए खोलना चाहा, तो वह ब्लॉग ही नहीं दिखाई दिया. संभवतः उस उस शानदार ब्लॉग के ब्लॉगर को यह नकारात्मक कामेंट नागवार गुजरा होगा, इसलिए उसने इस ब्लॉग को डिलीट कर दिया. इस पर हमें एक किस्सा याद आया.

छोटा सा केतन शुरू से ही दादी का कुछ ज्यादा ही लाड़ला था । माँ के दफ्तर जाने और फिर आ कर घर के काम करने की वजह से वो केतन को बहुत कम समय दे पाती थीं इसलिए सारे लाड़ उसको अपनी दादी से ही मिलते थे।
दादी अम्मा को पता था कि उसका बेटा बच्चों के मामले में बहुत सख्त और अनुशासन प्रिय है इसलिए वो हमेशा बच्चों को अपने पापा की डांट से बचाने के प्रयास में ही लगी रहती। फिर भी गाहे बगाहे कभी पढ़ाई तो कभी शरारतों के लिए थोड़ी बहुत डांट तो पड़ती ही रहती थी।
बड़ा बेटा रोहन अब समझदार हो गया था और पापा के कहे अनुसार ही चलता लेकिन केतन अभी बहुत छोटा था उसको जब भी लगता कि पापा से डांट पड़ने वाली है वो भाग कर दादी के पास आ जाता और उनकी गोद मे छुप जाता।
इसी तरह लुका-छिपी करते-करते केतन दसवीं कक्षा में पहुंच गया । वो पढ़ाई में बेहद होशियार था और अच्छे नम्बरों में पास होने के लिए दिन रात मेहनत कर रहा था। उसके सभी पेपर बहुत अच्छे हुए तो उसको उम्मीद थी कि वो प्रथम श्रेणी में तो अवश्य उतीर्ण हो जाएगा। परिणाम वाले दिन दादी भी उसकी राह देख रही थी कि कब वो आकर उसको अपना नतीजा बताए और वो सबका मुँह मीठा करवाये।
इतने में वहां से केतन का एक दोस्त निकला और वहां दादी को देखकर बोला ,”दादी केतन तो फेल हो गया”
इतना बोल कर वो तो चला गया लेकिन दादी उसी समय बेहोश हो गयी ।उसी समय दादी को अस्पताल ले कर जाया गया।
जब तक केतन घर वापिस पहुंचा दादी अस्पताल पहुंच चुकी थी और उनकी हालत बहुत नाजुक थी ।डॉक्टर ने बताया कि शायद इनको कोई सदमा लगा है और इनको ब्रेन हैमरेज हो गया है। उसके बाद दादी को होश नहीं आया और तीसरे दिन वो भगवान जी के पास चली गईं।
शायद वो इसी बात से बहुत डर गई होंगी कि फेल होने की वजह से केतन को अपने पापा से कितनी डांट और मार पड़ेगी..!!
बाद में सब को पता चला कि केतन तो ना केवल अपनी कक्षा में बल्कि अपने स्कूल में भी सबसे ज्यादा अंक लेकर प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हुआ था..!! इसलिए ही कहा जाता है, सोचो-समझो-करो तथा सोचो-समझो-बोलो.

जनसंख्या शिक्षा पर हमारी 51 गीतों व कविताओं की पुस्तक है, जिसका शीर्षक हमने ”सोचो-समझो-कदम उठाओ” रखा है. जनसंख्या शिक्षा इतनी संवेदनात्मक समस्या है, कि यह किसी पर थोपी नहीं जा सकती. ”सोचो-समझो-कदम उठाओ” से सोचने-समझने का आगाह किया गया है, सोच-समझकर उठाया कदम अक्सर कामयाबी की ओर ले जाता है.

बच्चों या बच्चों के बच्चों से प्यार करना और मोह लगाना अच्छा भी है और आवश्यक भी, पर कहते हैं न ”अति सर्वत्र वर्जयेत”. दादी ने अगर केतन से इतना लाड़ न लड़ाया होता, उससे इतना मोह न लगाया होता तो शायद यह नौबत न आती!

सबसे बड़ी गलती उस दोस्त की थी, जिसने दादी को देखकर कहा,”दादी केतन तो फेल हो गया”.
इसी तरह किसी ब्लॉगर ने ब्लॉग लिखा और पाठक ने पढ़ा. हो सकता है ब्लॉगर और पाठक के विचार भिन्न हों, इसलिए पाठक को वह ठीक नहीं लगा होगा. स्वभावतः वह उस पर नकारात्मक प्रतिक्रिया करेगा. बस उसे यह ध्यान रखना होगा, कि प्रतिक्रिया इतनी तल्ख न हो, कि ब्लॉगर को अपना ब्लॉग डिलीट करना पड़े या आगे से न लिखने का संकल्प करना पड़े. इसी तरह नेट पर आए हैं, तो ब्लॉगर को भी हर प्रतिक्रिया को स्वीकार करने, वांछित उत्तर देने और सुधार करने के लिए तैयार रहना चाहिए. अनेक प्रतिक्रियाकार विरोध करते हैं, पर विनम्रता पूर्वक, जो कि बहुत अच्छी बात है.
अभी-अभी फेसबुक पर हमारे एक ब्लॉगर साथी का सुविचार आया है, जिसमें इसी तरह की कुछ बात कही गई है-
”अभिव्यक्ति वह नहीं जो निर्लज्ज हो जाये,
अभिव्यक्ति वह है जो मर्यादित भी हो और मुखर भी!!”
अंत में हम यह कहना चाहेंगे, कि सोचो-समझो-करो की नीति पर विचार करके कदम उठाना लाभप्रद होता है.

अजी ठहरिए! अभी से कहां चल दिए! सोचने-समझने-करने का काम मनुष्य करें-न-करें, पशु-पक्षी अवश्य करते हैं. हमारे घरों में चिड़िया-कबूतर अपने अंडों की सार-संभाल करने, बच्चों को दाना खिलाने के लिए आते हैं, उस समय भी वे एकदम चौकस रहते हैं. जरा-सा खतरा दिखने पर वे तुरंत उड़ जाते हैं.

कल एक वीडियो देखा-
गैंडे का शिकार कर उसे पेड़ पर लेकर चढ़ा तेंदुआ, जबड़े का जोर देखते रह जाओगे—
तेंदुए ने गैंडे का शिकार किया. अब उसे पेड़ पर चढ़कर आराम से उस गैंडे को खाना था. तेंदुए ने पेड़ पर चढ़ने से पहले पूरी स्थिति का जायजा लिया कि उसे कहां पर ले जाना ठीक होगा, उसके बाद उसने अपनी ताकत को तोला और फिर पलक झपकते वह उसे लेकर सीधे पेड़ पर ऐसी जगह पहुंचा जहां गैंडे को रखकर आराम से उसका भक्षण करना था. यह उसके जबड़े का जोर भी था और सोच-समझकर काम करने का सुनियोजित परिणाम भी.
आइए सोच-समझकर काम करने का पूरा-पूरा प्रयास करें, ताकि काम में सफलता भी मिले, व्यर्थ में ही कोई नाराज भी न हो, न ही किसी को कोई नुकसान पहुंचे. दादी वाली बात से इतनी तो शिक्षा ले लें!

चलते-चलते
27 मार्च – विश्व रंगमंच/नाटक दिवस = प्रतिवर्ष 27 मार्च को विश्व थियेटर दिवस आयोजित किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन संस्थान द्वारा यह दिवस मनाया जाता है l पहली बार विश्व थियेटर दिवस का संदेश जीन कॉस्टेओ ने 1962 में लिखा गया था । उसके बाद से हर बार 27 मार्च को आयोजित किया जाता है। उद्देश्य यह है कि थियेटर कला का विश्व भर में प्रचार करना है।

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244