उनसे बड़ा उत्कर्ष नहीं है
समानता का संघर्ष नहीं है।
मिलने से बड़ा हर्ष नहीं है।
नर-नारी के दिल जब मिलते,
उनसे बड़ा उत्कर्ष नहीं है।
प्रेम में मिले जो वही सही है।
रंग कोई हो, वही सही है।
प्रेम की कोई जात न होती,
हमने तुमरी बाँह गही है।
दिल से दिल में झूठ न होता।
प्रेम सरोवर लगता गोता।
स्वर्ग की कोई चाह न रहती,
प्रेम प्रेम संग जब है सोता।
अधिकारों का संघर्ष नहीं है।
चलता कोई कानून नहीं है।
विश्वास घात से सब कुछ मिटता,
सच के बिना, विश्वास नहीं है।
प्रेम में ना हो कोई सौदा।
प्रेम का नहीं होता हौदा।
प्रेम का सार है पूर्ण समर्पण,
खुशियाँ मिलतीं, खाकर कौंदा।
प्रेम में नहीं वासना होती।
लालच और आश ना होती।
सब कुछ समर्पित करके भी,
चाहत कोई खास ना होती।
प्रेम नहीं हम कभी कर पाए।
प्रेम के केवल गाने गाए।
तुमने सब कुछ सौंप दिया था,
प्रेम के हमने पाठ पढ़ाए।