कविता

व्यंग्य- रामनवमी मनाते हैं

रामनवमी मनाते हैं
आज रामनवमी है
आइए! इसे भी औपचारिक बनाते हैं,
राम जी को भी भरमाते हैं
रामनवमी की औपचारिकता
हम सब खूबसूरती से निभाते हैं।
कहने को राम हमारे आराध्य हैं
हम सब के पूज्य हैं,
हमारे खेवनहार है
मर्यादा की प्रतिमूर्ति हैं
विष्णु जी के अवतार हैं।
हम भी राम जी से प्रेरित हैं
बस उनकी प्रेरणा का
थोड़ा सा उल्ट प्रयोग करते हैं।
राम मातु पितु आज्ञाकारी थे
हम ये ढोंग नहीं निभाते हैं,
राम शांत और सौम्य भावी थे
हम तो जैसे राक्षस प्रजाति के हैं।
राम महिलाओं का सम्मान करते थे
हम ये औपचारिकता नहीं निभाते हैं,
राम भाइयों से प्रेम करते थे
हम तो भाइयों का हक छीनने के
हरदम षड्यंत्र करते हैं।
राम के अपने आदर्श थे
जो उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम बनाते हैं,
हमारे भी अपने आदर्श है
साम, दाम, दंड,भेद जैसे भी हो
अपनी तिजोरियां भरते हैं।
राम की दुहाई हम भी तो दे रहे हैं
राम की पूजा आराधना की
औपचारिकता निभाते ही हैं।
पर राम जी समझें ,न समझें
हमारा तो कोई दोष नहीं,
उनका युग कुछ और था
आज का युग कुछ और है।
राम जी पितृ आज्ञा से वन गये
ये उनकी समस्या थी,
हम तो बिना आज्ञा के ही
मां बाप को वृद्धाश्रम ढकेल आते हैं।
बस अफसोस इतना है कि
हम रामनवमी मनाते हैं
राम जी को याद करते हैं
उनकी पूजा आराधना करते हैं।
मगर हमारी विवशता तो देखिए
जिसे राम जी देखने तक नहीं आते,
जब हमारे पड़ोसी तक भी
हमसे कोसों दूर भागते हैं,
हमें इंसानी जानवर बताते हैं।
हम जब भी कष्ट में होते हैं
वे बहुत प्रसन्न होते हैं।
अब राम जी को कम से कम
मेरा एहसान मानना चाहिए,
हम साल भर अच्छा बुरा जो भी करें,
रामनवमी तो राम जी के
नाम पर ही मनाते हैं,
मन से न सही,ऊपर से ही सही
जय श्री राम के नारे तो लगाते हैं
पुरखों की परंपरा जिंदा रखे हैं
पीढ़ी दर पीढ़ी राम जी को ढोते आ रहे हैं,
राम के नाम को हम ही तो जिंदा रखे हैं,
मगर आज कलयुग में राम जी
ये एहसान भी कहां मानते हैं
फिर भी हम रामनवमी मनाते हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921