गीतिका/ग़ज़ल

जिसको बेहद सच्चा समझा उसमे बेहद छल

जिसको बेहद सच्चा समझा उसमे बेहद छल निकला
लोगों के चहरे पढ़ने में में कितना असफल निकला

दौरे ग़र्दिश में जब असली किरदारों से भेंट हुई
यारी में कम हर कोई ऐयारी में अव्वल निकला

दौलत से इंसानी कद का कद तय करती दुनिया में
वो ही पंड़ित वो ही ज्ञानी जिसका सिक्का चल निकला

जिनमें करने की चाहत है वे कब वक्त गँवाते हैं
और निकम्मे लोगों का कल कल‌ करते हर कल निकला

जब जब अंतस की तृष्णा को प्रेमामृत की चाह हुई
रिश्तों के घट में से केवल धोखा और गरल निकला

चहरों के औरा से आगे हम जब दिल तक पहुँचे तो
हर हँसते चहरे का सीना चाक ज़िगर घायल निकला

जिसने ख़ुद को जैसा पेश किया बस मान लिया तूने
बंसल तू तो सचमुच में‌ नादां निकला पागल निकला

सतीश बंसल
१५.०४.२०२२

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.