कविता

कल हमारा है

कल हमारा था या नहीं
इससे बाहर निकलिए
नयी उर्जा नयी सोच का
नव जागरण करिए।
सकारात्मक भाव से
बेहतर की कल्पना कीजिए,
निराश होकर मत बैठिए।
उठिए ! आत्मविश्वास जगाइए
मुस्कुराइए, बीती बातों को भूल जाइए
बेहतर कल की बात सोचिए
फिर देखिए सबकुछ कैसे बदलता है
गहन अंधेरा कैसे छंटता है
जो लग रहा है कल भी हमारा नहीं है
वो कल कितनी सहजता से
हमारा आपका अपना होता है
कल हमारा है का सपना साकार होता है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921