पर्यावरण

ध्वनि प्रदूषण त्रासदी पर नियंत्रण ज़रूरी

वैश्विक स्तरपर यह बात जग प्रसिद्ध है कि भारत एक शांतिप्रिय देश है और यह बात सांच को आंच नहीं पर पूरी तरह फिट बैठती है। क्योंकि आज दुनियां में भारत की साख़, लोकप्रियता, आपसी सहयोग, नीतियों से भारत की प्रतिष्ठा में चार चांद लगे हैं। परंतु बड़े बुजुर्गों का कहना सत्य है कि चांद पर भी धब्बे हैं, यानें अगर हमारी गौरव गाथा विश्व में गायी जा रही है तो स्वाभाविक रूप से कुछ कमियां भी हो सकती है। हालांकि उसपर नियंत्रण कर आगे बढ़ना भारत का हजारों वर्षों से स्वभाव रहा है।
साथियों बात अगर हम संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) रिपोर्ट 2022 के ध्वनि प्रदूषण पर भारत की स्थिति की करें तो इस रिपोर्ट में दुनिया के कुल 61 प्रदूषित शहरों में से 13 दक्षिण एशिया से और पांच शहर भारत के हैं।बांग्लादेश के ढाका को दुनिया के सबसे ज्यादा शोरगुल वाले शहर के रूप में स्थान दिया गया है उसके बाद दूसरे नंबर पर यहां के सबसे बड़े राज्य के एक शहर को 114 डेसीबल रिपोर्ट कर दूसरा सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है!!! जबकि मीडिया के अनुसार वहां के स्थानीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने इस तथ्य को गलत बताकर अपनी सफाई में डेसीबल के असली आंकड़े पेश किए हैं।
साथियों बात अगर हम ध्वनि प्रदूषण को परिभाषित करने की करें तो, ध्वनि प्रदूषण को अप्रिय और अवांछित ध्वनि को शोर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण, प्रदूषण का एक भौतिक रूप है, यह वायु, मृदा और जल जैसी जीवन रक्षक प्रणालियों के लिए प्रत्यक्ष रूप से हानिकारक नहीं होता है अपितु इसका प्रभाव ग्रहणकर्ता पर पड़ता है, साथ ही मानव इससे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है।
साथियों बात अगर हम ध्वनि प्रदूषण से मानवीय शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचने की करें तो, ध्वनिक प्रदूषण चिड़चिड़ापन एवं आक्रामकता के अतिरिक्त उच्च रक्तचाप, तनाव, कर्णक्ष्वेड, श्रवण शक्ति का ह्रास, नींद में गड़बड़ी और अन्य हानिकारक प्रभाव पैदा कर सकता है। इसके अलावा तनाव और उच्च रक्तचाप स्वास्थ्य समस्याओं के प्रमुख हैं, जबकि कर्णक्ष्वेड स्मृति खोना, गंभीर अवसाद और कई बार असमंजस के दौरे पैदा कर सकता है।
साथियों बात अगर हम वर्तमान परिपेक्ष में मानवीय सोच की करें तो ध्वनि प्रदूषण से बचने, शांति की तलाश में हम अक्सर ऐसी जगहों पर जाना पसंद करते हैं जहां कम शोर हो, ट्रैफिक की आवाज़ कम हो, कम भीड़-भाड़ हो और जहां हम एकांत में कुछ पल शोर शराबे से दूर बिता सकें। लेकिन शोर और ध्वनि प्रदूषण साये की तरह हमारा पीछा करते हैं, हमारे देश में हालात ये हैं कि जश्न और आस्था के नाम पर शोर मचाने वाले लोग वक्त की परवाह नहीं करते, सड़कों पर बिना वजह प्रेशर हॉर्न बजाते हैं और पार्टी, शादी और प्रचार के नाम पर शांति पसंद लोगों की जिंदगी में शोर का ज़हर घोलते हैं।
साथियों बात अगर हम ध्वनि प्रदूषण संबंधी कानूनों और नियमों की करें तो, भारत में ध्वनि प्रदूषण से संबंधित कानून ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के तहत ध्वनि प्रदूषण को अलग से नियंत्रित किया जाता है। इससे पहले ध्वनि प्रदूषण और इसके स्रोतों को वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत नियंत्रित किया जाता था। इसके अतिरिक्त पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 के तहत मोटर वाहनों, एयर-कंडीशनर, रेफ्रिज़रेटर, डीज़ल जनरेटर और कुछ अन्य प्रकार के निर्माण उपकरणों के लिये ध्वनि मानक निर्धारित किये गए हैं। वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत उद्योगों से होने वाले शोर को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/प्रदूषण नियंत्रण समितियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
वर्ष 2000 में केंद्र सरकार ने ध्वनि प्रदूषण को लेकर कुछ नियम बनाए थे जिनके मुताबिक, रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउड्स स्पीकर्स, ऊंचे म्यूजिक, और ड्रम का इस्तेमाल गैरकानूनी है। रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकर बजाना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन। रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच खुली जगहों पर लाउडस्पीकर या म्यूजिक बजाना एक दंडनीय अपराध है। साइलेंस जोन्स जैसे अस्पताल, नर्सिंग होम, शैक्षणिक संस्थान और अदालतों के 100 मीटर के दायरे में किसी भी वजह से शोर 50 डेसिबल से ज्यादा का नहीं होना चाहिए।
साथियों बात अगर हम ध्वनि प्रदूषण से हानियों के बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन की करें तो, दुनिया भर में बढ़ती आबादी के साथ ही लोगों के लिए कई परेशानियां भी सामने आ रही हैं। अब ऐसी एक चेतावनी विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने जारी की है, उसके अनुसार 2050 तक दुनिया में हर 4 में से एक 1 व्‍यक्ति को सुनने में परेशानी की समस्‍या का सामना करना पड़ सकता है। इसका मतलब यह है कि 2050 तक लोगों के सुनने की क्षमता में कमी आ जाएगी, गत वर्ष इस संबंध में चेतावनी जारी करते हुए डब्‍ल्‍यूएचओ ने इस समस्‍या के समाधान के लिए इलाज और इससे बचाव के लिए अधिक निवेश करने का सुझाव दिया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक 80 डेसिबल से ज्यादा की आवाज़ ना सिर्फ कानों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि इसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है। ज्यादा ऊंची आवाज़ से हर्ट रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और इंटरनल ब्लीडिंग का खतरा पैदा हो जाता है। रात में होने वाला शोर बुजुर्गों और छोटे बच्चों की नींद की क्वालिटी पर बुरा असर डालता है।
साथियों बात अगर हम यूएनडीपी रिपोर्ट 2022 के अनुसार दुनिया में सबसे शांत और प्रदूषित शहरों की करें तो, रिपोर्ट के अनुसार,दुनिया के सबसे शांत शहर 60 डीबी पर इरब्रिड  69 डीबी पर ल्योन, 69 डीबी पर मैड्रिड, 70 डीबी पर स्टॉकहोम और 70 डीबी पर बेलग्रेड हैं। सूची में भारत के अन्य चार सबसेअधिक प्रदूषित शहर कोलकाता (89डीबी), आसनसोल (89 डीबी), जयपुर (84 डीबी), और दिल्ली (83 डीबी) है। रिपोर्ट में दुनिया भर के कुल 61 शहरों को ध्वनि प्रदूषित स्थान दिया गया है, जिनमें से 13 शहर दक्षिण एशिया से हैं,जबकि उनमें से 5 भारत के हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि ध्वनि प्रदूषण त्रासदी पर नियंत्रण जरूरी, ध्वनि प्रदूषण पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम रिपोर्ट 2022 दुनिया के 61 प्रदूषित शहरों में 13 दक्षिण एशिया पांच भारत के हैं।ध्वनि प्रदूषण  मानवीय शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर हानि पहुंचा सकती है जिसे रेखांकित कर नियंत्रण करना समय की मांग हैं।
— किशन सनमुखदास भावनानी 

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया