कविता

रीति रिवाज

किस पथ पर चल रहा समाज हमारा
ये खोखले रीति रिवाज किसके लिए
बेटियों को  देते है हम पूरी आजादी
बहुओं से पूरा घूघट करवाते है
ये कैसे रीति रिवाज है
आज का इंसान नहीँ समझता
अपने घर की बहू मजबूरिया
वो भी तो किसी की घर की बेटी है
उसको भी हक़ प्रसन्न रहने का
हम डरते है इस बात से
हमारी बेटी अपने खुश रहे सुसराल में
वो भी दुखी हो सकती है
वो भी स्वतंत्र  होना चाहेगी
बहु को देते किस बात की सजा
इसलिये तो तय करनी होगी
 रीति रिवाज की मर्यादा
जिस पर चलना सबके के लिए आसन
जो खुशियों की हो  पहचान
— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश