क़ीमत व़ोह ही जानते हैं – किसी की यादों की
मिटा देते हैं जो खुद को-अपनी ही यादों को
मतलब व़ोह ही समझ – सकते हैं यादों का
जीते हों जो ज़िनदगी में – याद कर के यादों को
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माना कि देता नही कभी – कोई भी किसी का साथ
मगर चल कर तो देखते तुम – दोक़दम तो हमारे साथ
भुलाई जा सकती अगर- यादें सिरफ रोने से ही
तो मसकरा कर को्ई भी – छुपाता नही अपने ग़मों को
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दिये हैं अगर कै्ई सुख – अप ने हम को पयार मे्
तो दरद-ओ-ग़म भी बूहत – मिले हैं हम को बेकार में
चरचा बुहत की है दुनिया में – लोगों ने हमारी बात की
आप भी पढ ली जिये हमारी कहानी – खोल कर कितबों को
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हम व़ोह नही जो भूल जाऐं – कभी भीआप के पयार को
हम तो व़ोह हैं जो कर देते हैं – निसाह अपनी ही जान को
मुशकिल बुहत होता है द़िनदगी में – मिलना मुक़दरों का
हम तो ऩोह हैं जो बसा लेते हैं – अपने दिलों में दूसरों को
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शरारत अैसी बसी हुई है – आप की इन मसत आंखों में -मदन-
क़ियामत अैसी बसी हुई है – आप की इन क़ातिल अदाओं में
निगाहें हमारी हटती ही नही हैं – आप के इस मासूम चिहरे से
शिकायत अैसी है हम को – और हमारी इन बेताब नज़रों को