कविता

अनंत यात्रा

शून्य से शिखर तक
जीवन की गतिमान यात्रा
खुद को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर होने का दंभ
आम से खास तक
पापी से सन्यासी तक।
रूला, लंगड़ा, अपाहिज, कोढ़ी
या नर्क से बद्तर जीवन स्वामियों तक
सुख सुविधा के अनंत भोगियों तक
धन पिपासुओं से धन याचक तक।
हर जीव, जंतु, पशु पक्षी, पेड़ पौधे
जल,जल या नभचर तक
हर किसी की जीवन यात्रा
जो किसी भी रुप में शुरू हुई है।
उसका समापन अनंत की यात्रा से
पुनः नव जीवन यात्रा के लिए,
परंतु हम आप यही तो सोच नहीं पाते
खुद को खुदा का पर्याय मान बैठते
और फिर एक दिन खाली हाथ
अपना अपना रटते रटते।
निकल पड़ते मोह माया की फ़िक्र
हाथ से फिसल जाती,
सिर्फ यह जाता एक शून्य
जो शरीर को मिट्टी हम
छोड़ देता इस जहां में
और निकल पड़ता अपनी अनंत यात्रा पर
स्वतंत्र हो जाता भव बंधनों से
यथार्थ बोध कराता आगे बढ़ जाता।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921