कविता

मां की ममता

मां के बिना नश्वर सा है ये काया,
मां की ममता जन्नत की  छाया।
धन्य है मानव जो मिला है साया,
मां ने अपना हर फर्ज है निभाया।
मां की ममता है एक प्यारी मूरत,
ईश्वर में भी नजर आती है सूरत।
मां ही है बच्चों की एक ज़रूरत,
मां ही है गीता बाईबल इबादत।
मां ही है मेरा अब  एक  जीवन,
मां ही है सुबह की एक अंजान।
मां के चरणों में  है एक जन्नत,
जहां पुरी हो जाती है सब मन्नत।
ईश्वर भी तरसते मां  की ममता,
मां ही है जगत  की  एक दाता।
मां के सामने है बस धूल बराबर,
मां ही है जीवन का एक आधार।
न ढुंढो मंदिर ,मस्जिद, गुरुद्वारा,
इसके चरणों में जगत है  सारा।
खुशियां देने में सब कुछ है वारा,
जिस के सामने दुःख भी हैं हारा।
मां तो चमकता है  एक सितारा,
मिट गया मेरा  सब   अंधियारा।
मां ही मेरा अब एक तेरा सहारा,
तुम भी ये जीवन हैं अब गवारा।।
— कुमारी गुड़िया गौतम

गुड़िया गौतम

जलगांव, महाराष्ट्र