कविता

/ कोई शाश्वत सत्य नहीं है यहाँ /

विरोधी लगता हूँ मैं
अंध परंपरा के आवरण में !
सच को सच
झूठ को झूठ बोलना,
अंधा श्रद्धा के विरूद्ध
आवाज़ लेना
खतरा बनाया है दुनिया में किसने?
जनता अभी बंदे हैं
मूढ़ विचारों की मुट्ठी में
विचारों की स्वतंत्रता
हरेक को होना
अक्षरों के साथ चलना
उन्नति है इस जग में
भाई चारे की भावना से ही
लोक कल्याण होगा
दूसरे के साथ
अपना – पराया, वैर भाव रखने से
शांति कभी नहीं होगी किसी को
दूसरे के स्वतंत्र कदम,
विचारों की उन्नति का आश्वासन
बड़ों का ही होता है
बड़ा पद मिलने से नहीं
चित्त में स्वीकार्यता होना
बड़ाई का असली नाम है
हरेक को स्वीकार करना
हर श्रम का मान दिलाना
सच्ची प्रगति का प्रमाण है
किसी पर, किसी का जबरदस्ती
हुकूमत का अहमियतता
संकीर्ण मन की चेष्ठा है
मन खुले आसमान का होना
जग के साथ संतुलन बनाये रखना
शिक्षा की परिणति है
दूसरे को हानि पहुँचाना,
बाधा में डालना, अत्याचार
अमानवीय व्यवहार जंतु प्रवृत्ति है।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।