ग़ज़ल
सुनने के लिए है, ना सुनाने के लिए है,
ये गज़ल फक्त उनको मनाने के लिए है,
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देखा जो चाँद को तो दिल को आसरा हुआ
कोई हमें भी राह दिखाने के लिए है,
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इक बार इस गली से गुज़रना ज़रूर तू,
ये इश्क जो धोखा है तो खाने के लिए है,
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इस दिल-ए-नादान को जिसका था इंतज़ार,
उसका तो सारा वक्त ज़माने के लिए है,
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छोटे से शरारे को तू कमतर ना समझना,
काफी किसी जंगल को जलाने के लिए है,
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इस दौर के इंसान की आदत है इक बुरी,
करता ही ये एहसान जताने के लिए है,
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यूँ तो ना मैं उठता तेरी महफिल से रात भर,
जाना ज़रूरी लौट के आने के लिए है,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।