कविता

आओ घमंड भाव का परित्याग करें

आओ हम एक दूसरे के घर को खुशियों से भर दें।
एक दूसरे का साथ देकर ,
एक  दूसरे के जीवन को आसान बना दें ,
आओ हम एक दूसरे के सुख – दु:ख के साथी बने।
हम सब , जन्म से पूर्व ,
इस धरती पर कुछ लेकर नहीं आए थे ,
हम सबको कुछ न कुछ ,
एक  दूसरे से इसी जग में मिला ,
हमारी सफलताओं  में है सभी का योगदान ,
सब कुछ है हमारा ,
हम क्यों अहंकार में जीते हैं ?
आओ घमंड भाव का परित्याग करें।
हमारे संस्कारों में यह नहीं था ,
हम अपनों से  दुर्व्यवहार क्यों कर रहे हैं ?
चंद रुपयों के लिए जन्मों के रिश्तों को  क्यों तोड़ रहे हैं ?
हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को क्या सीख देंगे ?
आओ हम बुराइयों को अपनी अच्छाइयों से दूर कर दें।
एक दूसरे के हृदय में एक दूसरे के प्रति अगाध  प्रेम  हो,
हम जब  भी ! मिले , एक दूसरे से हंसकर मिलें ,
हममें  सौहार्द हो , चारों ओर चेतना प्रकाश हो ,
आओ हम सब मिलकर एक दूसरे  के संग अपनी  जिंदगी ! को जी लें ।
— चेतना चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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