कविता

प्रकृति हम सब की माता है

प्रकृति हम सबकी माता है
तुझसे  ही  अटूट-नाता है।
तू ही सब के प्राण-दाता है
तू ही तो भाग्य-विधाता है।

मानव के लिए तू वरदान है
तेरी महिमा बड़ी महान है।
तू धन सम्पदा की खान है
तुझसे ही सारा-जहान है।

तेरी गोद बड़ी निराली है
-जहाँ छाई बड़ी हरियाली है।
जिसमे फुल-फलों की डाली है
तू ही वसुंधरा तू ही माली है।

तुझसे ही धूप-हवा-पानी है
तुझसे मिट्टी-अगन-हरियाली है।
तुझसे ही बादल काली-काली है
तेरी महिमा बहुत निराली है।

तुझसे ही तो बरखा-बहार है
तू ही जड़-चेतन का आधार है।
तुझसे ही सजी सारा-संसार है
तुझसे ही धरती का श्रृंगार है।

आओ प्रकृति का सम्मान करें
हम सब इसका गुणगान करें।
हम सब इसकी देखभाल करें
हम इसकी सुरक्षा का ध्यान करें।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578