लू चल रही है…
लू चल रही है
लू लग रही है…
शहरों में भी
ख्वाहिशों में भी…
पसीना से लथपथ
नीम के नीचे
सुस्ता रही है
सपने भी अपने भी…
घिसती चली जा रही है
जिंदगी…
लड़खड़ाती चली जा रही है
परिवेश…
आ भी जाओ
प्रिय प्रियतम
बरसात की रानी
वर्षा कर जाओ शहरों में
शीतल कर जाओ ख्वाहिशों में
पता तो चले शहरों में
कितनी जिंदगी है
कितनी गंदगी है…
कुछ पोल खुले वादों के
कुछ मतलब परस्त इरादों के
एक बार फिर…,
घुटन भरी जिंदगी को
प्राण वायु दे दो…
जीने के लिए कुछ सपने
कुछ ख्वाहिश
और कुछ आयु दे दो…
— मनोज शाह ‘मानस’