हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : कटी उम्र होटलों में, मरे अस्पताल जाकर

लाहौल विला कूवत! देश-धर्म के लिए मरने में भी कोई तुक है? मरना ही है, तो किसी अस्पताल में जाकर ठाठ से मरना चाहिए। पंचतारा अस्पताल में एसी कमरे में नरम गुदगुदे बिस्तर पर आराम से लेटे हुए प्राण त्यागने में जो सुख है, वह और कहीं मरने में कहाँ है? उससे पहले मजे में पड़े हुए नई-नई नर्सों के दर्शनों का सुख मिलता है और देखने आने वाले मित्रों-रिश्तेदारों की नजरों में हमारी इज्जत भी बढ़ जाती है।
बेटा यह देखकर मूँछों पर ताव देता है कि मैंने अपने बाप के इलाज में इतने लाख रुपये खर्च किये हैं। मन ही मन में वह यह भी कहता है कि “तेरी क्या औकात है?” हालांकि ऐसा वह प्रकट में नहीं कहता। उसको डॉक्टरों, नर्सों, दवाविक्रेताओं, अस्पतालों आदि को पालने का जो पुण्य प्राप्त होता है वह अलग से।
अस्पताल में मरने का सुख आसानी से नहीं मिलता। इसके लिए वर्षों तक कठोर साधना करनी पड़ती है। सबसे पहले तो घर का खाना त्यागकर होटलों का खाना लगातार खाना पड़ता है, और तमाम तरह के फास्टफूड झेलने पड़ते हैं। इसके अलावा सुबह देर तक सोना, जब तक कि दुकान या ऑफिस में जाने का समय न हो जाए और रात में देर तक जागकर वीडियो गेम खेलने या फिल्में देखने की तपस्या भी करनी पड़ती है। तब जाकर आदमी बीमार पड़ने लायक होता है।
पहले पेट खराब होता है, जिसे ठीक करने के लिए फिर फास्टफूड खाने पड़ते हैं और कई तरह के कोल्ड ड्रिंक पीने पड़ते हैं, जिनमें महीनों पहले का सड़ा हुआ मीठा पानी भरा रहता है। पेट ठीक करने के नाम पर तमाम तरह की कड़वी गोलियाँ खानी पड़ती हैं। पर उनसे भी पेट ठीक नहीं होता, बल्कि नई-नई बीमारियाँ लग जाती हैं। तब जाकर अस्पताल में भर्ती होने का सुख प्राप्त होता है।
जो अधिक भाग्यशाली हैं, वे अस्पताल में लगातार भर्ती रहने का आनन्द उठाते हैं। महीनों तक एसी कमरे में रहते हुए वे डॉक्टरों, नर्सों और घरवालों से अपने सेवा कराते हुए स्वर्ग का सुख यहीं प्राप्त कर लेते हैं। बुढ़ापा उनके पास नहीं फटकता, क्योंकि वे भरी जवानी में जीवन का आनन्द उठाते हुए परलोक प्रस्थान कर जाते हैं।
आप समझ ही गये होंगे कि अस्पताल में मरने का सुख प्राप्त करने की तपस्या सरल नहीं है, इसके लिए घोर साधना करनी पड़ती है। सभी को आज से ही यह साधना प्रारम्भ कर देनी चाहिए, ताकि उनको भी अस्पताल में मरने का सुख प्राप्त हो सके।

— बीजू ब्रजवासी
ज्येष्ठ शु. 11, सं. 2079 वि. (10 जून, 2022)