मुक्तक/दोहा

योग और व्यायाम

(1)
करना नित व्यायाम,ज़िन्दगी मंगल गाती।
कहता चोखी बात,मान यदि मन को भाती।
जीवन में उत्थान,यही तो सब ही चाहें,
करता जो है योग,जिंन्दगी सदा सुहाती।।
(2)
जीवन है संग्राम ,तनावों ने घेरा है।
काया रहे स्वस्थ,खुशी का तब डेरा है।
कहते वेद -पुराण,निरोगी रहना हरदम,
जो योगों से दूर,हर्ष ने मुँह फेरा है।।
(3)
जीवन में व्यायाम,अहम सानी है रखता।
जो रहता है सुस्त,दुखों के फल है चखता।
यही आज उद्घोष,सतत् श्रम को है करना,
वरना रोग-प्रकोप,मनुज को आकर भखता।
(4)
योग करे गतिशील,सफलता मिलती जाती।
होता नवल विहान,जि़न्दगी है मुस्काती।
करना तुम नहिं भूल,नहीं तो पछताओगे,
मानोगे जो बात,ताज़गी नित मुस्काती।।
(5)
आशाओं के फूल,सदा ही बंधु विहँसते ।
जो करते व्यायाम,नहीं रोगों में फँसते।
यही हक़ीक़त जान,सदा तन की वर्जिश हो,
जो हैं मूरख लोग,शिथिल हो गहरे धँसते।।
(6)
कर लो आज विचार,योग की महिमा जानो।
कर लो तुम संकल्प,सदा गरिमा पहचानो।
कहते स्वामी लोग,सदा काया चमकाना,
पर भीतर से तेज,योग करके ही पाना।।
(7)
योग बिना अँधियार,योग जीवन चमकाता।
योग साध लो बंधु,सतत् जीना है भाता।
व्यायाम की शान,कभी धूमिल नहिं होती,
जिसका तन-मन स्वस्थ,नवल ताकत पा जाता।।
(8)
भारत में तो योग,सतत सम्मानित होता।
जो खो देता वक्त़,आदमी दर्द सँजोता।
मेरा है यह सोच,योग को जानो-मानो,
जो खो देता स्वास्थ्य,बंधु वह फिर तो रोता।।
 — प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com