कविता

व्यंग्य कविता

सबकी इच्छा आम हो गए
आम आदमी आम ही खा रए,
आम ही बिक रए,आम ही पा रए,
आम ही कट रए आम ही बंट रए,
आमन के बस जूस हैं बन रए ।
आम खौ पकने आम खौ तपने,
आमई को मजा है सबखौ चखने ।
कच्चे आम,पक्के आम,
लंगड़े आम, दशहरी आम,
सिंदूरी और चोसा आम,
जाने कित्ते तरह के आम,
मीठे आम खट्टे आम,
पेड़ पे लटके सगरे आम ।
पत्थर देखो खा रए आम,
टूट-टूट के गिर रए आम,
राम ने लपके अली ने लपके,
छीने-झपटे सबने आम,
स्वाद सबन खौ देत रे आम,
पना औ चटनी बन रए आम।
मेंगोशेक बन मिट गए आम,
जूसर-मिक्सर में पिस गए आम,
गर्मी ऐसी भरी सबै में,
आम निचौड़ें, आम दबाएँ,
बांटे सिल पे, लुत्फ उठाएँ,
बड़े बड़न को पेट भरत हैं,
नाम के राजा आम रहत हैं,
ठांड़े वाले, बैठे वाले,
खटिया वाले, घटिया वाले,
काले-गोरे कुर्सी वाले,
चतरन के इनसे नाम हो गए,
सबकी इच्छा आम हो गए ।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।