लघुकथा

सवेरा

अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस 26 जून पर विशेष

”बापू, मुझे निकालो यहां से. यह पिंजरा मेरे लिए जेल बन गया है.” पिजरे में कैदी बने संतू ने पिता से कहा.
”मैंने तुझे बंद किया है क्या, जो मैं तुझे आजाद करूं? तेरी शराब ने ही तुझे खराब किया है, अब तो तुझे पिंजरे में शराब के साथ ही रात काटनी पड़ेगी.” बापू चल दिए.
”रातभर पिंजरे में बंद रहूंगा, 2500 रुपये जुर्माना भी दूंगा, सामाजिक बहिष्कार की चेतावनी भी मिल गई है, अपनी नटनिया को क्या मुंह दिखाऊंगा!” संतू सोच में पड़ा था.
”मैं तो डमरू-खंजीरा बजाता हूं, पर नटनिया तो जान हथेली पर लेकर रस्सी पर डोलती है, जिससे रात को रोटी नसीब हो, पर उसे रोटी कैसे मिले! मैं तो सारे पैसे शराब में घोलकर पी जाता हूं!” पतली गली से नसीब निकल लिया.
”अरे तू पैसे क्या शर्म भी शराब में घोलकर पी गया है!” शर्म को भी शर्म आ रही थी.
”घर में तो गद्दा भी नहीं नसीब होता, पर नींद खूब आती है, यहां जेल में गद्दा है, पर नींद कैसे आए!” संतू साख बचाने की जुगत सोच रहा था!
”साख तो तेरी तभी चली गई थी, जब तेरी नटनिया ने तेरे हाथ से बोतल छीन ली थी और तूने अपनी मर्दानगी दिखाकर उसके तन-मन को घायल कर दिया!” साख ने कहा, वह भी निकल ली!.
”तेरे लिए यही पिंजरा ठीक रहेगा, केवल रात भर के लिए नहीं उम्र भर के लिए.” शराब ने कहना जारी रखा, ”तुम लोग शराब न पियो तो शराब वाले शराब बनाएं ही क्यों?” शराब भी उसे छोड़कर चला गया.
”अच्छा है, तू खुद ही मुझे छोड़ गया, वर्ना सुबह बस्ती वाले आएंगे, 2500 रुपये का जुर्माना मांगेगे और शराब छोड़ने की कसम खिलवाएंगे, तब मैं तुझसे कैसे नजरें मिलाता!” संतू की सोच सिमट गई.
संतू जैसे अनेक कैदियों के शराब से तौबा करने से गांव का सवेरा हो गया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244