कविता

बदल गई है तू

 

कल और आज में

कितनी अलग अलग लगती है तू

मान या न मान बहुत बदल गई है तू।

याद आता है वो दिन

जब मिले थे हम तुम पहली बार

कितना अपनापन सा दिखा था

रिश्तों में एक अनुबंध सा लगा था।

कितना दुलार था

जब पहली बार तेरे हाथों से

जलपान किया था, तब

बड़ी बहन का प्यार हिलोरें भर रहा था।

तेरी जिद में बेटी का भाव था

जैसे तेरा ही सब अधिकार था।

रात जब हम भोजन पर साथ बैठे

तो माँ की ममता का समुद्र बह रहा था,

बातों की पोटली जब खोली तूने

तब खुद से ज्यादा मुझ पर विश्वास था।

तेरे आंसू बता रहे थे

जैसे तूझे मेरे होने ही नहीं

मिलन का भी विश्वास था,

हमारे रिश्तों में कुछ तो खास था

मुझे भी तुझ पर पूरा विश्वास था।

पर समय चक्र घूम गया

भ्रम सारा चूर चूर हो गया

ऐसा भी नहीं है कि हमने या तुमने

रिश्तों का सम्मान नहीं किया

सच तो यह है कि उम्मीद से ज्यादा

तुमने हमेशा मान सम्मान दिया

कल भी ऐसा ही होगा

इतना तो कह ही सकता हूँ मैं

पर वक्त का विश्वास भला कैसे करुँ?

अपने में सिमट रही है तू

हर दर्द निपट अकेले सह रही है तू

विष का प्याला अकेले पी रही है तू

शायद तुझे बोध नहीं है

कुछ और भी हैं इस जहां में

जो तेरी पीड़ा से परेशान हलकान हैं।

यह अलग बात है कि

उनके पास कोई समाधान नहीं है।

शायद तुझे भी इसका अहसास है

इसीलिए हर जहर अकेले पीने का प्रयास है,

मगर तेरा यही प्रयास तो डराता है

बेचैन करता रुलाता भी है।

बड़ी समझदार लगती है तू

हम सबकी दादी अम्मा बनती है तू

हमें खुश देखने चाह रखती है तू

पर सूकून से जीने भी नहीं देती है तू

सब अच्छा है का इशारा करती है तू

हमारी पीड़ा को नहीं समझती है तू।

माना कि बड़ा विवेक रखती है तू

हमसे ज्यादा पढ़ी लिखी है तू

पर तेरी खामोशी सब कुछ कह जाती है

अनुभव इतना तो है ही हमारा

बिना देखे ही पढ़ने में आ ही जाती है।

पर हम तुझे विवश भी नहीं कर सकते

हमारे रिश्ते ही हैं ऐसे

शायद इसीलिए हमें गुमराह कर रही है तू

रोज रोज हमको रुला रही तू

खुश न होकर भी बहुत खुश दिखती है तू

आवरण ओढ़ कर जीती है तू

अपने आप में घुट घुटकर जीती है तू

क्योंकि आजकल बहुत बदल गई है तू।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921