यात्रा वृत्तान्त

जीवन को दें अनंत इंद्रधनुषी रंग

आप अपने जीवन को कितने रंग देते हैं, यह सब आपकी प्रतिभा व श्रम पर निर्भर करता है। जितना व्यक्ति समझदार होता है, संवेदनशील होता है, सृजनात्मक होता है, जागरुक व सजग होता है उतना ही स्वयं के जीवन को अनेकानेक रंग व उड़ानें देता है।
जीवन को जितना सिकोड़ों, छोटा करो, सीमित कटघरे में बांधों उतना ही ऊब, तनाव, दुख व मानसिक रोग आते चले जाते हैं। जीवन में ऐसी कोई भी बात हो ही नहीं सकती कि जहां से हताश हुआ जाये, निराश हुआ जाये, अवसादग्रस्त हुआ जाये। यदि ऐसा होता है तो तय मानकर चलिये कि जीवन जीने की कला आई ही नहीं।
अमेरिका के न्यूजर्सी में रहने वाले टॉम टर्किच के जीवन में ऐसा हादसा हुआ कि वे भावनात्मक रूप से टूट गये। लेकिन अपने श्रम, जतन, हौसलें से जीवन को एक नई ही दिशा दे दी। वे अपने कुत्ते सवाना के साथ सात साल में करीब पैंतालिस हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा करके 38 देश घुम लिये।
टॉम इस यात्रा को पांच साल में पूरा कर लेते, लेकिन कोरोना व खुद की बीमारी के कारण दो साल अधिक लग गये। उनकी इस यात्रा में सवाना ने उन्हें पूरी तरह से उत्साहित रखा, उनकी सुरक्षा की व जोश दिया।
असल में 2006 में टॉम की गर्लफ्रेंड का दुर्घटना में देहावसान हो गया। अब इस तरह की आपदा पर सामान्यतया दुखी हो जाते हैं, हताश हो जाते हैं, उदास हो जाते हैं जीवन से हार मान लेते हैं। लेकिन टॉम के हौंसले व प्रतिभा ने इसी अवसर का सदुपयोग किया व जीवन को एक नया ही आयाम दिया।
आज टॉम दुनियाभर में कितने ही लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। यदि आप अपने आस-पास देखें तो कोई न कोई टॉम जरूर दिखाई देगा और फिर क्यों न आप स्वयं टॉम बनें व खुद के जीवन को नई उमंग देें, खुशियां दे, उत्साह व उल्लास दें व अपने स्नेहीजनों, प्रियजनों व अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बनें। यह हो सकता है, होना ही चाहिए। और जीवन में दुख तो आते रहते हैं, परेशानियां तो आती रहती हैं, लेकिन सब इस पर निर्भर करता है कि इन अवरोधों से हम कैसे निपट सकते हैं।
एक तो यह हो सकता है कि अवरोध के सामने हार कर बैठ जायें, दूसरा यह भी हो सकता है कि इसी अवरोध को सीढ़ी बनाकर जीवन को और भी उच्चतर आयाम पर ले कर जायें।
कभी भी अपने जीवन को एक आयामी या अल्प-आयामी न बनायें। जीवन अनंत आयामों का एक अनंत सिलसिला है। जरा अपने चारों तरफ नजर तो दौड़ायें कितना कुछ अस्तित्व सतत किये ही जा रहा है–फूल, फल, पंछी, हवाएं, आसमान, बादल, बरसात, झीलें, समंदर, जमीन, पहाड़ियां, रेगिस्तान, बर्फ क्या नहीं है इस अनंत अस्तित्व में? क्या कभी एक क्षण को भी प्रकृति किसी बात को लेकर हताशा होती है? क्या किसी सुबह ऐसा होता है कि सूरज की पहली किरण के साथ पंछी कलरव न करने लगे?
याद रखिये जीवन का कोई ओर है न छोर है…पालने में ली गई पहली किलकारी से, अंतिम सांस तक अनंत-अनंत संभावनाओं से जीवन भरा पड़ा है। रोज-रोज अपने जीवन को नये-नये रंग दें, उसे इंद्रधनुषी उमंग दें…अच्छा संगीत सुनें, खुद कुछ बजायें, गायें, नाच लें, हंस लें, रो लें, सृजन कर लें, अपने घर के आंगन को अच्छे-से साफ-सुथरा कर लें, अपने कपड़े धो लें–कोई काम न तो छोटा होता है न ही न करने जैसा। जितना आप अपने प्रेम व उत्साह से काम करेंगे उतना ही कोई बहुत छोटे-से छोटा काम भी महान से महान हो जायेगा।
अपने प्रेम, सृजन, संवेदनशीलता, सौहाद्र व श्रम से खुद भी सुखी रहें व अपने आसपास खुशियां बिखरें–इससे बड़ी कोई मानव-सेवा हो ही नहीं सकती। जीवन को जरा अवसर तो देखें, आप खुद हैरान हो जायेंगे कि जीवन इतने रंगों से भरा है, संगीत से भरा है, उमंग व उत्साह से भरा है।

संतोष भारती (बनवारी)

स्वतंत्र विचारक, लेखक एवं ब्लॉगर निवासी पुणे