कहानी

कहानी – मां से मायका

पूरे दो वर्ष बीत गए हैं, विभा अपने मायके नहीं गई है। आज भतीजे के मुंडन का आमंत्रण मिला है।इस बीच कई बार भैय्या- भाभी ने उसे मायका बुलाया पर वह नहीं गई। जब से मां यह संसार छोड़ कर गई है तब से उसे मायके जाने का मन ही नहीं हुआ। पिता की मौत तो कैंसर से कई साल पहले ही हो गई थी।तब से मां ही उसकी माता और पिता दोनों थी। माँ उसकी सर्वस्व थी। हर संकट से उबारने वाली साक्षात दुर्गा।
        विनय कह रहे थे-“अब तो विभा, तुम्हें मायके चले जाना चाहिए।बुआ के बिना मुंडन कहाँ होता है फिर उन्होंने तुम्हें आदर सहित  निमंत्रण भेजा है।चली जाना।वहां सबको अच्छा लगेगा।”
         यह सुनकर विभा ने रुंधे गले से कहा-“हां, चली जाऊंगी पर मायका तो मां से ही होता है। कईयों से सुना है कि माता-पिता के मरने के बाद भाई-भाभी बेटियों की उपेक्षा करते हैं। जहां इतना प्यार-दुलार मिला वहां उपेक्षा मैं सह नहीं पाऊंगी।बस यही सोचकर मेरा जाने का मन नहीं करता।”उसने आगे कहा-“जब  भी मैं मायके जाती थी तो मां गली के बाहर आकर मेरा रास्ता देखती थी।जैसे ही मैं घर पहुंचती थी वैसे ही मां मुझे अपने गले से लगाकर आँचल में छुपा लेती थी। उनका बड़ा सा पाटा था ।जिसमें बैठकर वह मेरे लिए कभी शर्बत तो कभी चाय बनाकर मुझे पिलाती थी। बड़े प्रेम से मुझे मेरी पसंद का नाश्ता बनाकर खिलाती थी। दोपहर के भोजन में मेरी पसंद का खाना बनाती थी।आलू दही की सब्जी,परवल की सूखी सब्जी,दही बड़े और गर्म कचौरियां मुझे खिलाती थीं। जब तक मैं मायके में रहती तब तक वह मेरा किसी छोटे बच्चे की तरह ध्यान रखतीं। इस सम्बंध में पिताजी और भाईयों से उनकी बहस भी हो जाती थी। पिताजी की मृत्यु के बाद मां उदास रहने लगीं पर जब भी वे मुझसे मिलतीं बहुत खुश हो जातीं। अब भला मेरा वहां कौन इतना ख्याल रखेगा? भाई की शादी के बाद मैंने मायके में कदम नहीं रखा।।भगवान  जाने भाभी कैसी हो? मुझसे  कैसा व्यवहार करें?बस  यही सोचकर मायके जाने का दिल नहीं करता पर अब तो मुंडन में जाना ही पड़ेगा।” यह  कहकर विभा मायके जाने की तैयारी करने लगी।
         वह सुबह की ट्रेन से रायपुर पहुंच गई। उसने घर जाने के लिए एक रिक्शा कर लिया और मायके पहुंच गई। जैसे ही वह  रिक्शे से उतरी तो उसे सुखद आश्चर्य हुआ कि उसकी भाभी गली के बाहर बांहें पसारे उसे गले लगाने को खड़ी थी।वह दौड़कर भाभी के गले लगकर रो पड़ी।
        अंदर आई तो मां के पाटे पर बैठकर भाभी ने उसे चाय बनाकर दिया।उसकी पसंद का नाश्ता बालूशाही और नमकीन दिया।वह  अभिभूत हो गई। भाभी उसे मां का प्रतिरूप लग रही थी।उसे ऐसा लगा जैसे कि मां ही फिर से उसके पास आ गई हो।
        दोपहर के भोजन में उसे आलू-दही की कढ़ी ,परवल की सूखी सब्जी और गर्मागर्म पूड़ी कचौरी भाभी ने बनाकर खिलाया।वह बेहद खुश हो गई। पूरे समय  भाभी ने मां की तरह ही उसका ख्याल रखा।
          मुंडन संस्कार धूमधाम से सम्पन्न हो गया। घर में ढेर सारे रिश्तेदार आये हुए थे। विभा की मौसी ने विभा से कहा-” अब तो तेरा मायका तेरा न रहा विभा, अब तो तेरी भाभी की मनमानी चलेगी। तेरी मां होती तो आज कुछ दूसरा ही होता।क्या करें?मां के मरने के बाद बेटियों का मायका ही छूट जाता है।भाभियां अब ननदों को कहां पसन्द करती हैं। बहुत बुरा जमाना आ गया है भई!आज की लड़कियां रिश्ते नहीं सम्भाल पाती हैं।”
          यह सुनकर विभा ने कहा-“नहीं मौसी, ऋचा भाभी ऐसी नहीं हैं।वो बिल्कुल मेरी मां जैसी ही मुझे प्यार करती हैं। मुझे तो मां की कमी महसूस ही होने नहीं देतीं।रिश्ते तो दोनों तरफ से सम्भालना होता है, तभी तो परिवार चलता है न मौसी।मेरी तो भाभी लाखों में एक है।”यह कहते हुए उसे आत्म ग्लानि हुई।
यह सुनकर मौसी खुश होते हुए बोली-“चलो अच्छा है कि तेरी भाभी समझदार है।काश!दुनिया की हर बहू-बेटी ऐसी ही होती।”
आज विभा मायके से विदा हो रही थी। भाभी ने मां की तरह ही उसे जाते समय ढेर सारा अचार, पापड़ बड़ियां भर-भर कर दिया। रास्ते के लिए नाश्ता बनाकर उसे दिया। जब वह चलने लगी तो  भाभी ने रुंधे गले से कहा-“विन्नी, तुम्हारी माँ नहीं है यह समझकर दो साल तक तुम मायके नहीं आई पर तुम्हारी भाभी मां तुम्हारा रास्ता हर पल निहारती रही कि तुम आओगी। मां की मृत्यु के बाद मायके से रिश्ता समाप्त नहीं होता। भाभियां मां का स्थान ले लेती हैं ।यह कभी मत भूलना।”यह कहती हुई भाभी ने उसके हाथ में नई साड़ी और कुछ रुपए रखकर उसे गले से लगा लिया।
     विभा को ऐसे लगा जैसे सचमुच वह अपनी मां के गले लग रही हो।उसकी आँखें अब सावन-भादों की तरह बरसने लगीं।उसके मन का सारा मैल अब आखों के रास्ते बह चुका था।
— डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- shall.chandra17@gmail.com