कविता

मानव बनाना है

मेरे भारत को क्या हो रहा है ?
एक अपनी जिन्दगी के लिए,
कईयों की जिन्दगी ले रहा है.
मानव ही मानव को
अपने अत्याचारों से किए है पीड़ित,
गान्धी आजाद विवेकानन्द के,
विश्वास भंग किए जा रहे हैं
मेरा ही मन,
धिक्कार रहा है मुझे,
मेरे ही भारत को कोई उजाड़ रहा है.
अगर बचाना है मुझे,
अपना राष्ट्र, स्वाभिमान और अस्तित्व,
तो अपने स्वार्थो को भुलाना है,
विश्वास बदल न जाए अविश्वास में,
इसे ध्यान में रख,
अपने को रक्तरंजित नदी में डुबाना है,
भारत को बचाना है,
मगर तेरे इस बलिदान से क्या होगा ?
दूसरों को भी इसी मोड़ पर लाना है,
जो खून बह रहा पानी की तरह,
उसका तुझे मानव बनाना है.
इस तरह भारत को करना,
अपने विचारों को झंकृत,
राष्ट्रप्रेमी यदि कवि है तू सच्चा,
जान जायगा देश का बच्चा-बच्चा
और तुझे भरने भारत में शुद्ध भाव.

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)