कविता

आह्वान

यह समय नहीं आरोपों का,
गलती पर उठते कोपों का।
उत्तर   देना   है  तनी   हुई,
दुश्मन की शातिर तोपों का।।
बैठेंगे   फिर   बतिया   लेंगे,
बाहों  में  भर  गफिया  लेंगे।
पर आज अगर हम चूके तो,
दुश्मन हिमगिरि हथिया लेंगे।।
सीमा  पर  डटे  जवानों  की,
भारत  माँ  के   दीवानों  की।
हिम्मत को साठ गुना करना
अलबेलों  की  मस्तानों  की।।
चहुँ ओर शोर है नारों का,
मक्कारों के नक्कारों का।
बटमारों का मुरदारों का,
मतलब परस्त गद्दारों का।।
गम्भीर विषय है धीर धरो,
उपहास हास को चीर धरो।
यदि ऐसा नहीं किया तो फिर,
परिणाम सुनो शमशीर धरो।।
परिहास कलंकित कर देगा,
उपहास कलंकित कर देगा।
वाणी  पर संयम रखा न तो,
इतिहास कलंकित कर देगा।।
पीढ़ियाँ  सुनेंगी  जब निन्दा,
कोसेंगीं   मर  जाता  जिन्दा।
जयचन्द  मीर जाफर  जैसी,
कालिख  कर  देगी  शर्मिन्दा।।
अन्तरतम तक में सुलग आग,
जब धधक रही हो जाग जाग।
सुन ध्वंस राग खटराग त्याग,
अपनाने    बैठे       वीतराग।।
गृह युद्ध नहीं ग्रह युद्ध करो,
कारा को कर से शुद्ध करो।
जीवन की जय लिख दो पहले,
फिर खुद को गौतमबुद्ध करो।।
इसलिए उठो स्वर  में स्वर दो,
सीमा  के   प्रहरी  को  वर  दो।
आहुति  की  वेदी  पर  हैं जो,
उनको निश्चिन्त निडर कर दो।।
कह दो कि समय हुंकारों का,
बस  आग  और  अंगारों  का।
तू – तू मैं – मैं  का  समय नहीं,
है  समय धनुष – टंकारों  का।।
यह महाप्रलय की बेला है,
भूखण्ड वलय की बेला है।
साहस की अग्नि परीक्षा है,
लय और विलय की बेला है।।
जल्लादों को जल्लाद कहो,
फौलादोँ को फौलाद कहो।
दुश्मन को मुर्दाबाद कहो,
भारत को जिन्दाबाद कहो।।
बन मृत्यु द्वार आ धमकी है,
तलवार धार धर चमकी है।
दुश्मन  गुर्राया  है  फिर से ,
परमाणु बमों की धमकी है।।
पल पल खल जहर उगलता है
सुन कर धक् धैर्य उछलता है।
किस तरह हृदय को शान्त करूँ,
नस नस में खून उबलता है।।
यों तो हम शान्ति मसीहा हैं,
गीतों   से   भरे   पपीहा  हैं।
कोई अरि  दिखलाए  उँगली,
उस रिपु के लिए मलीहा हैं।।
इसलिए देश के वीरों का,
मानवता रक्षक हीरों का।
आवाहन करता हूँ खुलकर,
योद्धाओं का रणधीरों का।।
हे तरुण तनिक हुंकार भरो,
रणचण्डी का उच्चार करो,
भारत माता का धरो ध्यान,
अरि की छाती पर वार करो।।
हे अग्निपुत्र! अद्भुत् चरित्र,
तू   यत्र   तत्र   सर्वत्र  मित्र।
भारत माता का चरण राग,
कर दे विचित्र भू को पवित्र।।
हे  धीर – वीर !  तू   निर्विवाद,
उठबजा बिगुल कर सिंह नाद।
होने  दे   अरि   का  आर्त्तनाद,
भीषण  निनाद  कर शंखनाद।।
डगमग-डगमग धरती डोले,
विकराल काल मुँह को खोले।
नक्षत्र टूटने लग जाएँ,
बस कर बस कर अम्बर बोले।।
इस तरह धूम्र तूफान उठा,
छा उठे हृदय में कुपित छटा।
जो हैं आतंक समर्थक सब,
उनकी जिह्वा को धूल चटा।।
क्षर आदि आदि को नाप उठे,
इति नये सृजन को भाँप उठे।
फिर एक देश की क्या बिसात,
ब्रह्माण्ड समूचा काँप उठे।।
करुणा से दूर कहर बनकर,
क्रूरता कसाई सी भरकर।
दुश्मन पर टूट पड़ो बोलो,
बम बम जय महाकाल हरहर।।
कर उठे दुश्मनी चीत्कार,
बस त्राहि-त्राहि की हो पुकार।
हा हा खाए गिड़गिड़ा उठे,
हर बैरी मुँह से बार बार।।
हे  वीर ! हाथ  से  जला  दिखा,
उस शौर्य शक्ति कीअग्निशिखा।
जिस पर रण जयी शहीदों  का,
अजरत्व लिखा अमरत्व लिखा।।
ऐसी   भीषण   ज्वाला  बरसा,
बम  तोप  बाण भाला  फरसा।
इस तरह चला कर अस्त्र शस्त्र,
दुश्मन  को  कुछ  ऐसा  तरसा।।
बड़बड़ा   रहे   भड़भड़ा   उठें,
तड़तड़ा   रहे   तड़पड़ा   उठें।
फड़फड़ा  रहे   हड़बड़ा   उठें,
गड़गड़ा    रहे  गिड़गिड़ा  उठें।।
फुलफुला रहे पिलपिला उठे
तुलतुला रहे तिलमिला उठें।
कुलबुला रहे किलबिला उठें,
बुलबुला रहे बिलबिला उठें।।
विप्लव को कविता सत्य करे,
ज्वाला में ज्वाला गत्य करे।
षोणित की सरिताएँ फूटें,
जब मृत्यु ताण्डव नृत्य करे।।
आभास बदलने वाला है,
विश्वास बदलने वाला है।
भूगोल बदल जायेगा फिर,
इतिहास बदलने वाला है।।
अमरत्व फलेगा फूलेगा,
संहार हार कर भूलेगा।
चूमेगी चरण विजय तेरे,
संकल्प लक्ष्य को छू लेगा
— गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

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