स्वास्थ्य

मेनोपाॅज़ समस्या नहीं

आजकल नीलम के बर्ताव से घरवाले परेशान रहते है, कोई समझ नहीं पा रहा था नीलम की उलझन, ना नीलम समझा पा रही थी की उसे क्या हो रहा है।
 46 साल की नीलम वैसे तो खुश मिज़ाज और हल्के-फुल्के ख़याल वाली है। पर अचानक से कभी रोने लगती है, कभी बिना कोई बात के चिढ़ जाती है, कभी डर जाती है और धीरे-धीरे डिप्रेशन की शिकार होती जा रही थी। ऐसी तो ना थी नीलम पर अब हर महीने आने वाले पिरीयडस 5 दिन के बदले 15 दिनों तक चलते है। कभी फ़्लौ बढ़ जाता है तो शरीर में कमजोरी और मन में अनगिनत बदलाव आने लगते है।
नीलम जानती है ये मेनोपाॅज़ के लक्षण है। नीलम मन ही मन घबराती है मेनोपाॅज़ के बाद महिला जनन शक्ति या गर्भ धारण की क्षमता को खो देती है, क्योंकि ओवरी में इस्ट्रोजेन हॉर्मोन का उत्पादन कम हो जाता है जिसके कारण उनमें बहुत सारे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक बदलाव आते है, पर घर वालों को कैसे समझाए ?
खून में असंतुलन के कारण गर्मी लगती है, दिल तेज़ धड़कता है, रात में पसीना आता है, नींद नहीं आती है, सवेरे नींद जल्दी टूट जाती हैं, जनन पथ में बदलाव (जेनेटल चेंज) के कारण जननांग में सिकुड़न, सूखापन, खून बहना, पानी गिरना, सेक्स करने में दर्द या न करने की इच्छा आदि।
नीलम को लगता है वो अपनी जवानी खो रही है और बुढ़ापे की ओर बढ़ रही है वो मानसिक रोगी होती जा रही है। हॉर्मोन्स बदलाव के कारण नीलम की हड्डी में भी बदलाव आया है हड्डीयाँ कमज़ोर तहो गई है, जिसके कारण जोड़ों, पीठ और मांसपेशियों में दर्द का अनुभव होता है।
हॉर्मोन्स में बदलाव के कारण त्वचा रूखी हो गई है, शारीरिक बदलाव के अलावा मानसिक बदलाव भी हुआ है, जैसे थकान, चिड़ाचिड़ापन, उदासी, कुछ भी न करने की इच्छा, याद न रहना, खोये रहना, हर छोटी बात का भय लगना और उपर से ना पति उसे समझ पाता है न बच्चे। सबको नीलम का बर्ताव अजीब लगता है, सब अपने हिसाब से सलाह सूचना देते रहते है पर किसीके पास नीलम की परिस्थिति का समाधान नहीं।
नीलम खुद को अकेला महसूस करती है पति अपने काम में मशरूफ है, बच्चे अपनी ज़िंदगी में। दरअसल मेनोपाॅज़ स्त्री के जीवन का एक बहुत ही नाजुक समयकाल होता है सबसे पहले पति का साथ, घरवालों की परवाह और अच्छे डाॅक्टर से परामर्श से 50 % समस्या हल हो सकता है।
मेनोपाॅज़ के दरम्यान स्त्री का मूड़ बदलता रहता है उसे घरवालों के साथ और सहकार की आवश्यकता होती है।
जो स्त्री स्वयं को भूलकर घर परिवार को अपना सबकुछ देती है वो इतनी तो हकदार होती है की उसकी इस नाजुक परिस्थिति में उसे घरवालों की परवाह मिले प्यार मिले। हर स्त्री की ये एक ऐसी शारिरीक अवस्था है जिसमें अगर कमज़ोर मन की कोई स्त्री हो और उस पर ध्यान दिया ना जाए तो पागलपन के दौरे भी पड़ सकते है, और मनोचिकित्सक की जरुरत भी पड़ सकती है। ये समय-काल कुछ सालों का होता है तो जिस औरत ने परिवार के लिए इतने साल खुद को जलाया हो वो कुछ समय आपसे मांग रही होती है। स्त्री के उम्र के इस पड़ाव पर उसे अकेला छोड़ने की बजाय उसे प्यार, परवाह और साथ देकर उसकी पीड़ादायक परिस्थिति को हल्का करने में मदद करें।
— भावना ठाकर ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर