कविता

अन्दर की पत्थर

तराशिये अन्दर के छिपे पत्थर को
जिससे मुन्दर एक बुत बन जाये
जग वाले तुम पर फख्र करे और
जो खोये वो जार जार कल रोये

स्वंय मानव एक शिल्पकार है
अन्दर की हुनर को  दिखलाये
अपने आप को सुन्दर साँचे में
ढाल जग में महान बन    जायें

प्रकृति ने दी है हमें अनुपम सौगात
उस उपहार को सन्दर तन पायें
अपनी गुलशन भी महक उठे और
पड़ोसी को भी सुकून दे    आये

ये कायनात एक रंगमंच जैसा है
खुद को महान अभिनेता दिखलायें
तेरे अभिनय पर जग वाले हर दिन
रोये गम में खुशी में भी मुस्कुताये

हर कोई शख्स एक मुर्तिकार है
क्यूँ ना सुन्दर मूरत बन सजायें
औरों को मन मोहक सा लगे
खुद को नीक लग जग को भाये

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088