हास्य व्यंग्य

शर्मा जी ने कुत्ता पाला

इस युग में हर कोई कुछ न कुछ पालता है I कोई कुत्ता पालता है, कोई बिल्ली पालता है, कुछ लोग आदमी पालते हैं, कुछ लोग वहम पालते हैं, कुछ लोग साहित्यकार होने का अहं पालते हैं और कुछ लोग राजनीति की उर्वर भूमि में अपने भविष्य के सपने पालते हैं I रिटायर होने के बाद कुछ लोग मकान बनवाते हैं, कुछ लोग दुकान खोलते हैं, कुछ लोग कार खरीदते हैं और कुछ लोग बेकार हो जाते हैं I मेरे पड़ोसी शर्मा जी ने रिटायर होने के बाद कुत्ता पाल लिया I कुत्ता पालना कोई अजीब घटना नहीं थी, लेकिन जब शर्मा जी जैसा पशुवत प्राणी कुत्ता पालने लगे तो कुत्तों के अच्छे दिन कैसे आएँगे ? शर्माजी ऐसी कुत्ती चीज हैं कि उन्हें देखकर कुत्ते अपना कुत्तापन, गदहे अपना गदहपन, बंदर अपना बंदरपन भूल जाते हैं I उनके सामने आते ही कुत्ते शर्म से पानी-पानी हो जाते हैं I कुत्ते अगर बोलते होते तो शर्मा जी से अपनी तुलना करने पर अवश्य विरोध करते और कहते-“क्या मैं इतना गिरा हुआ हूँ कि आपलोग शर्मा जी जैसे नीच मनुष्य से मेरी तुलना कर रहे हैं I” शर्मा जी का पड़ोसी होना मेरे लिए कोई गौरव की बात नहीं है I कभी-कभी तो मेरे सामने बहुत असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब मेरा कोई मित्र मेरे घर में शर्मा जी को बैठे देखता है I मित्र कहता है-‘’यार वर्मा ! तुम कैसे लोगों के साथ उठते-बैठते हो I’’ मैं अपनी झेंप मिटाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी का कथन उद्धृत कर देता हूँ कि आप मित्र तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं I सच्चाई यह है कि शर्मा जी जैसा लीचड़ आदमी मेरा पड़ोसी है I उसने कमीनेपन और लीचड़पन की नई इबारत लिखी है I मेरे न चाहते हुए भी शर्मा जी मियादी बुखार की तरह कुत्ता सहित मेरे घर में आ धमकते हैं I उनको देखते ही मेरी श्रीमतीजी का पारा गर्म हो जाता है I कहती हैं-‘’आ गया आपका प्रिय दोस्त I’’ मैं कहता हूँ-‘’वह मेरा दोस्त नहीं, पड़ोसी है I जब मूसलचंद आ ही गया है तो क्या करें, ओखल में सिर तो देना ही पड़ेगा I उनके पड़ोस में मकान बनवाकर मैंने जो पाप किया है उसका दंड तो मुझे ही भुगतना पड़ेगा I’’ शर्मा जी ने अपने कुत्ते का नाम टोनी रखा है I उन्हें ठीक से हिंदी भी नहीं आती, लेकिन अपने कुत्ते का अंग्रेजी नाम रख लिया है I बातचीत करते समय वे बीच-बीच में अंग्रेजी शब्दों की छौंक लगाते रहते हैं I जो लोग उनकी शब्दावली से अपरिचित होते हैं उनके लिए उनकी शब्दावली अबूझ पहेली लगती है I वे मशीनरी को कमिश्नरी, स्कूल को इसकुल, न्यूज़पेपर को न्यूपेपर, कंप्यूटर को कमपोटर कहते हैं I उनके अंग्रेजी प्रेम से चिढ़कर कुछ लोग शर्माजी को अंग्रेजों की आखिरी औलाद कहते हैं I जिस प्रकार अंग्रेजी में शादी-व्याह के कार्ड छपवाकर कुछ लोग अंग्रेजियत के नशे में डूब जाते हैं उसी प्रकार शर्माजी भी अपने कुत्ते का अंग्रेजी नाम रखकर अपनी जाहिलीयत के नशे में डूबे रहते हैं I मुहल्लेवासियों के लिए शर्मा जी और टोनी दोनों अजूबे हैं I टोनी के सामने रोटी फेंक दो, लेकिन वह तब तक रोटी को मुंह नही लगाता है जब तक उसे कहा न जाए ‘टोनी, रोटी खा लो I’ लेकिन शर्मा जी पलक झपकते ही आपके सामान उड़ा सकते हैं I यह आवश्यक नहीं कि शर्मा जी किसी कीमती सामान पर ही अपने हाथ साफ़ करें I वे कुछ भी उड़ा सकते हैं, टूटी चप्पलें, रद्दी, पुरानी तौलिया, टूटी खाट, डस्टबीन I जब तक वे किसी का कुछ उड़ा नहीं लेते हैं तब तक उनका हाजमा ठीक नहीं होता है I चौर्य कर्म उनके लिए हाजमोला जैसा असरकारी है I चोरों का भी स्तर होता है, लेकिन शर्मा जी का कोई स्तर नहीं है I वे स्तरहीन चोर हैं I स्तरीय चोर लाख रुपए से कम की वस्तुएं नहीं उठाते, लेकिन शर्मा जी समभाव से सस्ती या महँगी कोई भी वस्तु उठा सकते हैं I उनका आधिकारिक नाम ती डी.के.शर्माजी है, लेकिन लोग उन्हें अनेक नामों से याद करते हैं I उनकी हरकतों के कारण पीठ पीछे लोग उनको चोरकट, बदमाश शर्मा, नाली का कीड़ा, उठाईगीरा, हरामखोर जैसे सम्मानसूचक विशेषणों से अलंकृत करते हैं I उन पर गालियों का कोई असर नहीं होता है I शर्मा जी गालीप्रूफ हो चुके हैं, उन पर गलियां उसी तरह बेअसर हो जाती हैं जैसे भारतीय नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप या गंजे के सिर पर पानी I
इधर की बात उधर और उधर की बात इधर करने में उन्हें महारत हासिल है I वे कई घरों को उजाड़ चुके हैं और उनका ‘झगड़ा लगाओ अभियान’ अभी भी बदस्तूर जारी है I सब कुछ जानकर भी मुहल्ले के लोग यदि मक्खी निगल लेते हैं तो इसमें शर्माजी का क्या दोष ? लोग शर्मा जी की बातों में आकर अपने घर को तबाह कर लेते हैं I शर्मा जी कई पत्नियों को अपने पतियों से अलग करा चुके हैं I सुमन उनका इकलौता पुत्र है I उन्होंने सुमन और उसकी बीवी के कानों में ऐसी मिसरी घोली कि दोनों को अलग कराकर ही दम लिया I एक ही मकान में रहते हुए उनके पुत्र और बहू का भोजन अलग-अलग बनता है I मुहल्लेवासी कहते भी हैं कि जिसने अपने पुत्र का घर उजाड़ दिया हो उसका क्या भरोसा, लेकिन फिर भी शर्मा जी की बातों में आकर लोग स्वयं अपने ही हाथों अपना घर उजाड़ देते हैं I कहने को तो टोनी कुत्ता है, लेकिन वह आदमी से अधिक समझदार है I मैं शर्मा जी और उनके कुत्ते को देखकर सोचता हूँ कि इस कुत्ते ने अवश्य ही पूर्व जन्म में कोई पाप किया होगा कि उसने ऐसा मालिक पाया है I यदि कमीनेपन का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें शर्माजी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित होगा I उनकी गिरावट की कोई सीमा नहीं है I सुबह–सुबह कुत्ते के गले में रस्सी बांधकर घुमाना शर्मा जी की दिनचर्या है I शर्मा जी की करतूतों के कारण उन्हें कोई पसंद नहीं करता है I वे जितने नीच हैं उतना नीच कोई बनना भी चाहे तो नहीं बन सकता है I मेरे मोहल्ले में उनके विरोधियों की संख्या सिर के बाल से भी अधिक है I उन्हें विरोधी भी नहीं कहना चाहिए, मुहल्ले के लोग शर्माजी से घृणा करते हैं I ऐसा नहीं है कि उनको सम्मान देने के लिए लोग उनके उपनाम के साथ ‘जी’ विशेषण का प्रयोग करते हैं I उनका पूरा नाम ही है डी.के.शर्मा जी I शायद उन्हें बचपन में ही पता चल चुका था कि उनकी हरकतों के कारण कोई उन्हें सम्मान नहीं देगा I इसलिए उन्होंने अपने उपनाम के साथ ‘जी’ नामक दुमछल्ला भी जोड़ लिया I अब लोग उनके उपनाम के साथ ‘जी’ जैसे सम्मानसूचक विशेषण लगाने के लिए मजबूर हैं I उन्होंने मुहल्ले के सभी लोगों को चूना लगाया है I उधार लेकर भूल जाना उनकी पुरानी आदत है I उनके विरोधी उनके कुत्ता पालन पर चुटकी लेते रहते हैं I लोग कहते हैं कि शर्मा जी में जितना कुत्तापन है उतना कुत्तापन किसी कुत्ते में हो ही नहीं सकता है I उनका कुत्ता तो निहायत शरीफ है I कुत्ता भी सोचता होगा कि किस कुत्ता आदमी के गले पड़ गया I शर्मा जी के कुत्ते में अधिक आदमीपन और शर्मा जी में अधिक कुत्तापन है I संगत से गुण होत है, संगत से गुण जाए I शुरू में उनका कुत्ता अधिक शरीफ था I वह एक बार डांट देने से चुप हो जाता था, लेकिन धीरे-धीरे वह अधिक बदमाश हो गया है I मेरे एक पड़ोसी कहते हैं कि साथ रहने से धीरे-धीरे शर्मा जी का कुत्तापन कुत्ते में आता जा रहा है I शर्माजी एक सरकारी विभाग में चपरासी के पद पर भर्ती हुए थे और क्लर्क के पद से रिटायर हुए I उनके विभाग के सहकर्मी कहते हैं कि वे पूर्व जन्म में गैंडा रहे होंगे I उनकी चमड़ी गैंडे की तरह मोटी है, वे मान-अपमान से ऊपर उठ चुके हैं I शर्मा जी को जूते मार दो, अपने घर से भगा दो, गंदी गालियाँ दे दो कोई फर्क नहीं पड़ता है I दो रुपए देकर शर्मा जी को सौ जूते मारे जा सकते हैं I एक बार उन्हें दफ्तर के सफाईकर्मियों की निगरानी करने का जिम्मा दिया गया तो वे उन सफाईकर्मियों से भी उगाही करने लगे I उन्होंने साफ़-सफाई के काम आनेवाली सभी वस्तुएं जैसे, झाडू, फिनायल, डस्टबीन आदि बेंच दिया I उनके खिलाफ लगातार सफाईकर्मियों की शिकायतें मिल रही थीं I इसलिए उनके खिलाफ जाँच की गई I शर्माजी के घर से सफाई संबंधी वस्तुएं बरामद की गईं I वे अवकाश प्राप्ति के नजदीक पहुँच चुके थे I इसलिए उच्च अधिकारियों ने दया दिखाते हुए उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की I उनसे सफाईकर्मियों की निगरानी करने का जिम्मा ले लिया गया I उन्होंने अपने दफ्तर में भ्रष्टाचार और यौन शोषण का कीर्तिमान स्थापित किया था I अवकाश प्राप्त करने के बाद भी दफ्तर के सहकर्मी उनकी माँ-बहन के साथ मौखिक अवैध संबंध स्थापित करते हुए उन्हें प्रतिदिन याद करते हैं I जब भी दफ्तर में चोरी या यौन शोषण संबंधी कोई वारदात होती है तो लोग शर्माजी के पूर्वजों का तर्पण करते हुए उन्हें याद करते हैं I उन्होंने चोरी और मक्कारी का जो स्वर्णिम इतिहास बनाया है वह आनेवाले चोरों का भी मार्गदर्शन करता रहेगा I दफ्तर में कोई चोरी करते हुए पकड़ा जाता है तो अन्य कर्मचारी कहते हैं कि शर्मा जी से कुछ सीखो, इतनी बेईमानी की, लेकिन केवल एक बार पकड़े गए I मेरे मुहल्ले के कुछ अच्छे लोगों ने मुहल्ले के कल्याण के लिए एक यूनियन का गठन किया था जिसका नाम लोक कल्याण संघ था I जिन्होंने इस संघ की स्थापना की थी वे सभी स्वर्ग सिधार गए और मुहल्ले में कुत्ताघसीटी करनेवाले नीच कर्मकांडी लोगों ने उस पर कब्ज़ा कर लिया I इसलिए कुछ शब्दवीरों ने उसका नाम कुक्कुर यूनियन रख दिया है I रेहड़ीवालों, खोमचेवालों को डरा-धमकाकर उससे कुछ रुपए ऐंठ लेना इस स्वनामधन्य नीच कर्मकांडी संघ का प्रमुख और एकमात्र कार्य है I आजकल शर्माजी उस लोक कल्याण संघ अर्थात कुक्कुर यूनियन के अध्यक्ष हैं और कुक्कुरबाजी में मस्त हैं I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]