कविता

उमड़-घुमड़ बदली आई

काली-काली घटा देखकर,
उमड़-घुमड़ कर बदली आई।
बिखर गई वह बारिश बनकर,
धरती पर हरियाली छाई।
मोर नाचते कोयल गाए,
हृदय पपीहा का हरसाये‌‌।
खेतों में फसलें बलखातीं,
किसान झूमें खुशी मनायें।
बारिश लाती रहमत खुलकर,
आओ बच्चो हम सब मिलकर,
जल है जीवन इसे बचायें ,
जग में सुख, खुशहाली लाकर।
जब न बरसे कहीं भी पानी,
धरा बने तब रेगिस्तानी ,
यह जिम्मेदारी हम सबकी।
बूंद-बूंद है हमें बचानी
— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र