जिंदगी को बहार कर लें क्या,
और कुछ इंतज़ार कर लें क्या।
खुद पे’ इख्तियार कर लें क्या
औऱ कुछ इंतज़ार कर लें क्या।
जिंन्दगी नाम कर दिया तेरे
जान अपनी निशार कर लें क्या।
आग दामन तेरे लगाकर यूँ
खुद को’ हीं फरार कर लें क्या।
रोग ये लाइलाज – सा लेकर,
खुद को’ यूँ बिमार कर लें क्या।
दो घडी़ साथ बिता कर तेरे
राबता दरकिनार कर लें क्या।
कर लिया जिंदगी कोई वादा
मौत से भी करार कर ले क्या।
आप के ही खयाल में डूबे
दिल को यूँ बेकरार कर लें क्या।
आजकल इश्क़ है अदाओं से
खुद को’ इश्तिहार कर लें क्या।
बोझ – सी जिंदगी हुई अब तो
चार कांधे कहार कर लें क्या ।
नम हुई आँख भी मेरी अब तो
आँसुओं को फुहार कर लें क्या।
— सीमा शर्मा सरोज