बालकहानी : श्रीराम का अभिनय
हर साल की तरह इस साल भी दशहरा के अवसर पर श्रीरामलीला का मंचन होना था। आसपास के क्षेत्र में हायर सेकेण्डरी स्कूल जबकसा के श्रीरामलीला मंचन कार्यक्रम की बड़ी ख्याति थी। आज सांस्कृतिक प्रभारी शिक्षक अरुण यादव जी ने बच्चों को मंचन हेतु पात्रों की भूमिका सौंप दी। सब अपनी-अपनी भूमिका से संतुष्ट और खुश थे।
तभी दीपक बोला- “सर जी ! तेजल इस बार राम की भूमिका करना चाहता है। वह आपको नहीं बता पा रहा है।” फिर तनिक सकुचाते हुए कक्षा ग्यारहवीं का छात्र तेजल बोला- ” हाँ सर जी ! मैं राम का रोल प्ले करूँगा इस बार।”
“ओ के…! मनोरम, तेजल को अपनी श्रीराम वाली भूमिका दे दो; और तुम इस बार भरत बन जाओ। ठीक है न…।” कहते हुए अरुण यादव जी सांस्कृतिक कक्ष से बाहर निकले। ्
राम की भूमिका पाकर तेजल बहुत खुश था। उसके माँ-बाबूजी राधिका और रघु को भी बहुत अच्छा लगा। राधिका के चेहरे पर मुस्कान देख रघु बोला- “क्यों…, क्या बात है राधिका ? क्यों मुस्कुरा रही हो ?”
राधिका बोली- “मैं इसलिए मुस्कुरा रही हूँ, क्योंकि हमारा तेजल बहुत जिद्दी है। हमारी तो एक बात मानता ही नहीं। अपने मूड पर ही रहता है। हमारा तो कुछ भी नहीं सुनता; और श्रीरामलीला मंचन के लिए उसे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी की भूमिका मिली है। वह श्रीराम का अभिनय कर पाएगा कि नहीं ।”
“बात तो तुम बिल्कुल सही कह रही हो। कैसे वह श्रीराम का रोल करेगा। घर में तो बहुत परेशान करता है भाई। कुछ बोलो तो मुँह फुग्गा बना लेता है। कहीं भेजो तो जाता ही नहीं। पढ़ने-लिखने के लिए कहो तो हूँ..हूँ..हाँ ..हाँ… करते हुए टाइम पास करता है। भविष्य में क्या करेगा वह समझ नहीं आता। मुझे बहुत चिंता होती है उसकी। पर सुना है कि वह श्रीराम बनने के लिए स्वयं तैयार हुआ है। यह जानकर अच्छा लगा कि वह श्रीराम वाला का रोल करेगा…” कहते हुए रघु ने पानी पीकर ग्लास को स्टूल पर रखा।
स्कूल में श्रीरामलीला मंचन का रिहर्सल शुरू हो गया। शिक्षक और बच्चे मन लगाकर तैयारी में जुट गये। तेजल की तैयारी कुछ खास ही थी; क्योंकि वह पहली बार श्रीराम की भूमिका जो कर रहा था। शिक्षक अरुण यादव जी का ध्यान तेजल के एक्टिंग की ओर कुछ अधिक फोकस था। तेजल घर पर भी अभ्यास करता था। जब भी उसे अवसर मिलता श्रीराम के अभिनय के लिखित संवाद को दुहराता। शारीरिक भावभंगिमा के साथ एक्टिंग करता। रघु और राधिका उसकी मेहनत व लगन से बहुत खुश थे। उनका मानना था कि नित अभ्यास भी एक शिक्षक का दायित्व निभाता है।
दशहरा का त्यौहार आया। रात्रि कार्यक्रम का आयोजन हुआ। श्रीरामलीला मंचन हेतु एक चौकोर मंच तैयार था। सजावट भी बड़ी अच्छी थी। कार्यक्रम का श्रीगणेश हुआ। मंच का परदा उठा।
अयोध्या के राजमहल का दृश्य है। चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ अपनी महारानी कैकेई के भवन में विराजित हैं। महारानी कैकेई के चेहरे पर कोप है। महाराज दशरथ सिर पकड़ कर बैठे हैं। उनके बुलावे पर ज्येष्ठ पुत्र राम आता है। सन्नाटा पसरा हुआ है।
राम बना तेजल एक आज्ञाकारी पुत्र राम का बहुत बढ़िया अभिनय करने लगा। उसकी बॉडी लेंग्युएज बड़ी गजब की थी। शाही चाल-चलन बहुत सुंदर। वेशभूषा अच्छा फब रहा था। शिक्षकों का ध्यान तेजल पर ही अधिक था। उसकी संवाद अदायगी सबको भा रही थी। तेजल राम-वनगमन प्रसंग में पिता महाराज दशरथ की आज्ञा पाकर वन प्रस्थान के दृश्य में श्रीराम का बहुत बढ़िया अभिनय कर रहा था। दर्शकवृंद करतल ध्वनि के साथ तेजल के अभिनय की तारीफों के पुल बाँध रहे थे। तीन दिनों तक चले कार्यक्रम में राम-भरत मिलाप, निषादराज के द्वारा गंगा पार, शबरी आश्रम प्रस्थान, खर-दूषण संहार, सीताहरण पूर्व स्वर्णमृग का पीछा करना, राम-सुग्रीव मैत्री, लक्ष्मण मुर्छा पर रामविलाप, रावणवध और अयोध्या आगमन जैसे दृश्यों में तेजल ने श्रीराम का बखूबी अभिनय किया। अपनी कला प्रतिभा से उसने सबका मन मोह लिया। पूरे मंचन कार्यक्रम दिवस तक तेजल छाया रहा।
श्रीराम का अभिनय करने के बाद तेजल के स्वभाव में बहुत बदलाव आया। उसका चिड़चिड़ापन दूर हुआ। बातचीत का तरीका बदल गया। दूसरों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करने लगा। अपने माँ-बाबूजी की हर बात मानने लगा। स्कूल में सहपाठियों के साथ अब उसका रुखा व्यवहार नहीं रहा। तेजल के स्वभाव में परिवर्तन देख शिक्षकों को आश्चर्य तो हुआ ही; साथ ही उन्हें खुशी भी हुई।
रघु और राधिका तेजल से अब बहुत खुश थे। तेजल की पढ़ाई-लिखाई के प्रति रुचि बढ़ गयी थी। पूजा-पाठ में भी तो अब उसका मन लगने लगा था। अब तो खेलकूद के प्रति भी उसका रूझान देखते ही बनता था। उसे पुलिस विभाग की सेवा के प्रति विशेष रुचि होने लगी थी। वह तैयारी में भी लग गया। उसकी मेहनत रंग लाई। इस साल उसने कक्षा बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। साथ ही बी. एस. एफ. का रिटन व फिजिकल टेस्ट भी पास कर लिया। रघु और राधिका तेजल की लगन व मेहनत देख फूले नहीं समाये।
एक दिन रघु ने तेजल से कहा कि बेटा बी. एस. एफ. की परीक्षाएँ तूने पास कर ली; अब तुम्हारी क्या इच्छा है। तेजल का जवाब था कि मैं भी तो यही सोच रहा हूँ कि क्या किया जाय। माँ को तालाब से आने दें, फिर बात करते हैं। वह भी अपनी राय रखेगी। मेरा मन भी घर-परिवार, समाज और देश के लिए कुछ अच्छा करना चाहता है।
फिर तीनों में विचार-विमर्श हुआ। रघु और राधिका ने सब कुछ तेजल पर ही छोड़ दिया। अंत में तेजल ने अपनी बात रखते हुए कहा- माँ ! बाबूजी ! मेरी दिली इच्छा है कि मैं बी एस एफ ज्वाइन करके माँ भारती की सेवा करूँ। आज दहशतगर्दियों ने हमारा जीना हराम कर दिया है। आज सारा देश आतंक की आग से जल रहा है। इस आतंक के खिलाफ मैं जंग लड़ना चाहता हूँ। आप दोनों मुझे ट्रेनिंग सेंटर भेजें। मुझे आप दोनों का आशीष चाहिए।”
रघु और राधिका ने अपने इकलौते बेटे तेजल को बॉर्डर सेक्युरिटी फोर्स ट्रेनिंग सेंटर देहरादून जाने के लिए अनुमति दे दी। गाँववालों को इसकी जानकारी हो गयी। शिक्षकों को भी अवगत हो गया। उन्हें भी बड़ा गौरवान्वित महसूस हुआ। तेजल घर से निकलने से पहले रघु और राधिका के पैर छूने के लिए झूका, तो उन्हें तेजल का श्रीराम वाला अभिनय स्मरण होने लगा। उन्हें लग रहा था कि आज सचमुच उनका बेटा वन को प्रस्थान कर रहा है महाराज दशरथ व रानी कौशल्या के पुत्र राम की तरह।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”