गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ध्यान इतना रहे उड़ानों में
रुक न पाओगे आसमानों में

अक्सर अब होते ही नहीं हैं घर
लोग रहते हैं अब मकानों में

आनलाइन का दौर आया है
अब कहां भीड़ है दुकानों में

मुझसे ज्यादा अमीर कौन यहां
दोस्त अनमोल हैं खजानों में

खूब सुर्खी बटोरिए लेकिन
यूं न भरिए जहर बयानों में

ऐ बुलन्दी ये जहन में रखना
पैर रुकते नहीं ढलानों में

— समीर द्विवेदी नितान्त

समीर द्विवेदी नितान्त

कन्नौज, उत्तर प्रदेश