गुरु-शिष्य का फेस्टिवल “शिक्षक दिवस”
इंसान के जन्म के बाद एक नया रूप , नया आकार, एक नए ज्ञान रूपी आकाश देकर संसार में नवजीवन देने का काम यदि कोई करता है तो वह गुरु करता है। आज उसी गुरु को हम शिक्षक कहते हैं। जीवन में अनेक गुरु होते हैं। जीवन में अपने ज्ञान से शिक्षक सदा मानव के जीवन मार्ग में ज्योतिपुंज का कार्य करता है। हमारे जीवन में प्रथम शिक्षक मां होती है। जो हमें बोलना सिखाती है।
शिक्षक एक दीपक की भांति होता है जो स्वयं को जलाकर नादान शिष्यों को रोशनी प्रदान करता है। शिक्षक मार्गदर्शक बनकर अपने शिष्यों को रास्ता दिखाने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। शिक्षक राहों का अन्वेषी ही नहीं बल्कि राह का निर्माता है जो मनुष्य के जीवन का निर्माण करता है।एक आदर्श शिक्षक शिक्षा के साथ संस्कारीशिक्षा, नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर अपने शिष्यों के चरित्र का निर्माण करता है । उनके व्यक्तित्व का निर्माण करता है। एक आदर्शराष्ट्र की कल्पना करता है। उत्तम शिक्षक ही अपने शिष्यों में उत्तम ज्ञान, सद्विचार, सकारात्मक सोच,चिंतन,विवेक, सद्गुणों और संस्कारों के द्वारा मनुष्य की श्रेणी में खड़ा करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। अपने शिष्टाचार जैसे गुणों से अबोध बालक में ज्ञान पुंज से एक नई दुनिया दिखाता है।
हमारे देश में आदिकाल से गुरुओं का सम्मान बड़ी श्रद्धा के साथ किया जाता रहा है। गुरु और शिष्य में श्रद्धा का पर्व है-“शिक्षक दिवस”। विश्व स्तर पर “विश्व शिक्षक दिवस” के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सर्वप्रथम 5 अक्टूबर1994 में विश्व घोषित किया। हमारे देश में सर्वप्रथम शिक्षक दिवस 1962 में मनाया गया। तब से आज तक मनाया जा रहा है। हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति तथा द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर (1888) शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने 40 साल तक विश्वविद्यालयों में एक शिक्षक के रूप में अध्यापन कार्य किया था। मैसूर ,कोलकाता एवं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों में दर्शन शास्त्र विषय के शिक्षक के रूप में अपनी सेवा दी थी। वे एक महान दार्शनिक थे।सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्मदिन मनाने हेतु उनके छात्रों ने आग्रह किया तब उन्होंने कहा था -“मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय इसे शिक्षकों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए योगदान और समर्पण को सम्मानित करते हुए मनाए तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी।”
उन्होंने 60 पुस्तके लिखी थी। शिक्षक दिवस एक शुभ अवसर हैं। जो गुरु और शिष्य के रिश्ते को मजबूत ही नहीं बल्कि एक दूसरे को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। आज शिक्षक और शिष्य के रिश्ते में दूरियां बढ़ती जा रही है।आज शिक्षा का महत्त्व धन से किया जाने लगा है।तब से शिक्षक का महत्त्व घटने लगा है।धन से महल तो बनाया जा सकता है कि तुम मनुष्य नहीं बनाया जा सकता है।बाजारवाद का निर्माण किया जा सकता है किंतु आदर्श नागरिक का निर्माण करना मुश्किल कार्य है। आज शिक्षकों को खांचों में बांटा जाने लगा है। शिक्षक के योगदान को समाज पैसों से आंकने लगा है।शिक्षक शिक्षा और शिक्षार्थी के मध्य बाजारवाद की बाजीगरी ने आज मनुष्य को अंधा कर दिया है।शिक्षा के निजीकरण ने बाजारवाद को तो जन्म दिया ही है किंतु मनुष्य बनाने वाले ईमानदार स्वायत्त संस्थाओं को भी कमजोर किया है। आज की शिक्षा इंफॉर्मेशन (सूचना) की शिक्षा हैं न कि ज्ञानाधारित। जो मानव जीवन के निर्माण, उपयोग के बजाय मानव जीवन के लिए मानवतावादी और व्यवहारिक ज्ञान को कमजोर करता है। –
— डॉ.कान्ति लाल यादव