भाषा-साहित्य

हिंदी भाषा की खूबसूरती

हम बचपन से ही एक पहेली सुनते आ रहे हैं-
“घोड़ा अड़ा क्यों?
प्याज सड़ा क्यों?”
उत्तर है- फेरा न था.

एक ज़माना था जब फ्रिज नहीं थे, फिर भी घर में सामान थोक में आता था. गर्मियों में आम खिड़की पर लाइन बनाकर रखे जाते थे और जो आम थोड़ा ढीला पड़ने लगता था, उसे पहले खाया जाता था. बान और निवार की चारपाइयों के नीचे प्याज फैलाकर रखे जाते थे और हर दूसरे-तीसरे दिन किसी बच्चे को चारपाई के नीचे भेजकर प्याज उलटवाए-पलटवाए जाते थे, ताकि प्याज सड़ें नहीं. इसी तरह घोड़े को कई दिन तक चलवाया न जाए, तो घोड़ा अड़ जाता है. यही हाल भाषा का भी है. भाषा की खूबसूरती बनाए रखने के लिए हमें भाषा में भी वांछित परिवर्तन करने पड़ेंगे. आज हम हिंदी भाषा की खूबसूरती की बात करेंगे.

यह तो आप जानते ही हैं, कि भाषा परिवर्तनशील होती है और किसी भी नए शब्द को आत्मसात करने के लिए उसके दिल के द्वार खुले रहते हों, तो भाषा की खूबसूरती बनी रहती है. ऐसा करने पर हमें कभी इस बात का अहसास ही नहीं होता कि हम कौन-सी भाषा बोल रहे हैं. वह उर्दू है, हिंदी या फिर अंग्रेजी. भाषा हमारे अवचेतन में प्रवेश कर जाती है. हम बस उसके साथ बहते जाते हैं. हम बोलने से पहले यह नहीं सोचते कि अरे यह तो उर्दू का शब्द है! असल में हम जान ही नहीं पाते कि कब कौन-सी भाषा हमसे जुड़ जाती है. हमने अंग्रेजी से ‘रेल’ शब्द लिया और उसमें अपना देशी शब्द ‘गाड़ी’ शब्द जोड़कर रेलगाड़ी शब्द बना दिया. अलमारी, चाकू, कोट आदि अनेक विदेशी शब्द हमारी हिंदी भाषा में इस तरह आत्मसात हो चुके हैं कि हमें लगता ही नहीं कि ये शब्द पुर्तगीज़ या अंग्रेजी भाषा से लिए गए हैं. उर्दू के इनायत, इबादत शब्द भी हिंदी के नितांत अपने शब्द हो चुके हैं. उदाहरणतया-

“समूह में साथ चलने की नज़ाकत आ गई,
साथ निभाने की लियाकत आ गई,
लिखना तो एक बहाना है,
लेखन को इबादत समझने की समझ आ गई.”

इसी तरह हमारी भाषा ने न जाने कब अंग्रेजी के ‘लैनटर्न’ शब्द से ‘लालटेन’ बना कर उसे हमारी जिंदगी का हिस्सा बना लिया, हम जान ही नहीं पाए. ‘एसएमएस’ शब्द की खूबसूरती अपनी जगह है और ‘संदेश’ शब्द की अपनी जगह. भाषा देश के आम जनमानस को जोड़ने का काम करती है. वह खास और आम के बीच पुल की तरह है. हिन्दी के वृहद शब्दकोश में समाहित विदेशी शब्दों को स्वीकार करना हिन्दी के विशाल हृदय का द्योतक है और यही इसकी विशालता और समृद्धि का कारण भी. हिन्दी इतनी समृद्ध है इसका अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता है कि इसमें समानार्थी और अनेकार्थक शब्दों की भरमार है, हर रिश्ते को एक अलग नाम से पुकारा जाता है, जो रिश्तों की अहमियत और निकटता का बोध करता है. हिन्दी हमारे अंतस में गहरे पैठ करनेवाली हृदय से निकलने वाली आवाज है जिसका निर्विवाद रूप से कोई सानी नहीं है.

भाषा की खूबसूरती के लिए एक से अधिक भाषाएं सीखना आवश्यक है. ज्ञान जितना भी अर्जित किया जा सके उत्तम ही होता है फिर वो चाहे विदेशी भाषा का ही ज्ञान क्यों न हो! हम दो बार चीन गए. वहां एयरपोर्ट पर हिंदी तो क्या अंग्रेजी भाषा तक कोई भी नहीं जानता. एयरपोर्ट से बाहर निकलने तक के लिए बहुत मुश्किल से किसी दुभाषिए का प्रबंध किया, तब कहीं बाहर निकल सके. चीन के अंग्रेजी न सीखने-सिखाने से केवल हमें ही नहीं उनको भी परेशानी का सामना करना पड़ता है. अभी कुछ दिन पहले समाचार आया था, कि ”अंग्रेजी भाषा में नुस्खे न समझ सकने के कारण चीन में चार हज़ार बच्चे मरे”. अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होने से इस दुःखद हादसे से बचा जा सकता था. आइए, हिंदी भाषा की खूबसूरती कायम रखने के लिए हम अन्य भाषाओं के लिए अपनी हिंदी भाषा के द्वार खुले रखें.

चलते-चलते हम आपको अनेक भाषाओं के ज्ञान का एक रोचक किस्सा सुनाते चलते हैं. आप जानते ही हैं कि विदेशी पर्यटकों के लिए गोआ एक प्रमुख आकर्षण केंद्र है. जहां पर्यटक होंगे, वहां विक्रेता भी होंगे. चार अनपढ़ युवक अपनी छोटी-छोटी चीजों की बिक्री से अपनी जीविका चलाते थे. विदेशी भाषाएं न आने के कारण अनेक पर्यटकों को वे अपनी बात समझा ही नहीं पाते थे, इसलिए स्वभावतः उनकी बिक्री कम होती थी. उन्होंने विदेशी भाषाएं सीखने के लिए कमर कस ली और पर्यटकों से सुनते-सुनते वे चार विदेशी भाषाएं अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पेनिश और रशियन बोलने-समझने लग गए. अब तो उनकी बिक्री में भरपूर इजाफा हो गया. यह है अनेक भाषाएं सीखने का फौरी लाभ.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244