कविता
चाहिए उसको खाना
मगर मिलता रहा है बहाना।
साथ में मिलती है फटकार।
कहते हैं तू इंसान हैं बेकार।
किसी के सामने हाथ मत फैलाया कर।
कमाकर यहां तू खाया कर।
रोज रोज मेरे दरवाजे न आया कर।
कहां मिलती है उसे रोटी।
बस सुन्नी पड़ती है उसे खरी खोटी।
भूख ने उसे ऐसा बना दिया है।
और लोगों ने उसका तमाशा बना दिया है।
— अभिषेक जैन