गीत/नवगीत

मालिक तुम्हारे सभी दुख हरेगा

अगर घर किसी का जो रोशन करेगा
वो मालिक तुम्हारे सभी दुख हरेगा
दुखा के क्यूँ दिल को खुशी ढूंढते हैं
ज्यों बंजर ज़मीं में नमी ढूंढते हैं
इधर है फरेबी , उधर भी भरम है
वजन झूठ का खूब , सच का क्यूँ कम है
मुहब्बत से तन-मन भरा जब रहेगा
वो मालिक तुम्हारे सभी दुख हरेगा
जो रहते अहम में , खुदी में हैं जीते
जहर आंसुओं के , हैं वो भी तो पीते
ये धन की गठरिया हैं बाँधे सभी , पर
न जाने ,  ये दौलत रहेगी यहीं पर
वहाँ के सफर में नहीं कुछ चलेगा
वो मालिक तुम्हारे सभी दुख हरेगा
सजाए हो तन को क्यूँ मन को न धोए
क्यूँ सुख मानकर दुख की लड़ियाँ पिरोए
भला क्या बुरा है करम , ये तो जानो
न मानो मगर इस हकीकत को जानो
जो बोया है तुमने वो फल तो मिलेगा
वो मालिक तुम्हारे सभी दुख हरेगा
अहंकार छोड़ो , सदा प्यार बांटो
चलो आज से तुम , अभी से तो जागो
सही रास्ते के पथिक बनके चलना
तुम अपने हृदय में सदा प्रेम भरना
हर एक दिल में ईश्वर तुम्हें नित दिखेगा
वो मालिक तुम्हारे सभी दुख हरेगा
— रेखा भारती मिश्रा

रेखा भारती मिश्रा

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