चांद की व्यथा
गाते थे बहुत फसाने मेरी चांदनी के
पटाने अपने हुस्न की मल्लिका को
रात रात जगकर देख मुझे संदेश भेजा करते थे
अब आ गए बहुत यंत्र मंत्र संदेश भेजने के
नहीं पूछता मुझे कोई सिनेमा के गानों में
नहीं रहा अब महबूबा की तारीफों में
बस किया करते हैं याद मुझे चौथ के दिनों में
उदास सा फिरता रहता हूं आसमां में
गिनता हूं तारे जो मेरे साथ घूमें आसमां में
करूं बिनती रब से बना दो हर दिन
क्यों नहीं बना देते चौथ को हर दिन
कल का दिन ही थी हैसियत मेरी बहुत
आज तो बस घूमूंगा वही रफ्तार में
— जयश्री बिरमी