गज़ल
जाने क्या चाहता है मुझसे मुकद्दर मेरा,
बनता काम बिगड़ जाता है अक्सर मेरा,
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याद आया मुझे ये आग लगाने के बाद,
इसी बस्ती में ही था छोटा सा इक घर मेरा,
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तुझसे मांगा है यही मेरे खुदा तेरे सिवा,
किसी के सामने झुके नहीं ये सर मेरा,
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मेरे हमसाए के बच्चे कहीं भूखे तो नहीं,
दिल बेचैन क्यों है आज इस कदर मेरा,
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मैं बहुत देर तक तनहा ही चला हूँ लेकिन,
नहीं कटता तेरे बिना ये अब सफर मेरा,
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सच बोला तो सारे लोग मुझसे रूठ गए,
रास आया नहीं किसी को ये हुनर मेरा,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।