कविता

दीपावली आई

दीप जल उठे दीपावली आई
कण-कण में उजियारा छाई,
घर-आँगन में रौनकता समायी
रँग-रंगोली मन को अति भायी।

घर आँगन सुहाने लगते हैं
सब के मन को भा जाते हैं,
बच्चे मौज-मस्तियाँ करते हैं
खूब हंसते और मुस्कुराते है।

बच्चे प्यारे-प्यारे लगते हैं
ये बड़े न्यारे-न्यारे लगते हैं,
चमकीले कपड़े पहनते हैं
बच्चे ख़ुशियाँ खूब मनाते हैं।

बच्चे फुलझड़ियाँ जलाते हैं
ये आँगन में फूल खिलाते हैं,
बच्चे खुब मिठाईयां खाते हैं
और खुशियाँ खूब मनाते हैं।

धूप-दीप से थालियां सजाते हैं
माँ लक्ष्मी की आरतियाँ करते हैं,
बतासे मिठाई से भोग लगाते हैं
सुख-शांति का आशीष पाते हैं।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578