लघुकथा

कृपा

मायूस होकर कुछ कर बैठने लिए मन से तैयार रामलुभाया अजीब-सी बहकी-बहकी बातें कर रहा था!
“इस बार भी चीन की लड़ियों की खूब बिक्री हो रही है, अपने दीवे कौन लेगा?”
“ठंड रखो, दीवा के बिना दीवाली होत है क्या? काहे मन को छोटा करत हो!” रामरखी ने दिलासा देने की कोशिश की!
“इतनी मेहनत करने के बाद भी लगता है कि इस बार भी हमारी दीवाली सूखी ही होगी! इससे तो मर जाना ही अच्छा है!”
“लो बोलो! त्योहार के खुशी के दिनन में मरन की बात करने लाग गए!”
“तो और क्या करूं! किस्मत को भी मुझ पर दया जो नहीं आती!”
“कर लियो बात! किस्मत तो बनानी पड़े है! थारो नाम रामलुभाया सै, तुम भगवान राम को लुभा सकत हो और भगवान राम भी तुम को लुभा सकत हैं!” रामरखी उसे हारने नहीं देना चाहती थी.
तभी सेठ जी का नौकर ननकू आ गया. चिकने ग्राहक को देखकर रामलुभाया सतर्क हो गया.
“राम-राम बाऊजी, क्या सेवा करूं?”
“सेठ जी ने 500 दिये मंगाए हैं. अभी तैयार हैं क्या?”
उसके हां कहने पर ननकू 500 दिये ले गया और कीमत से भी ज्यादा दाम दे गया.
रामलुभाया हैरान था और रामरखी की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था.
“देख ली राम जी की कृपा! कैसे तुम ने लुभा लिया!”
“अब तो और जल्दी-जल्दी दिये बनाने पड़ेंगे!”
“कल और 500 दिये मिल जाएंगे क्या? तुम्हारे दिये सेठ जी को बहुत पसंद आए. सेठ जी ने पुछवाया है.” ननकू एक बार फिर आ गया.
“हां मालिक, दिये तैयार हैं, आप जब मर्जी ले जाइएगा.”
अगले दिन फिर ननकू आया और उसने 500 दिये ले लिए. गिन के उसने 21 दिये रामलुभाया को दिये.
“मालिक! कोई नुक्स है क्या?” रामलुभाया हैरान था.
“अरे नहीं, नुक्स नहीं है. सेठ जी ने दिये कामवालों को देने के लिए मंगाए हैं. 21-21 दिये सबको देंगे. सेठ जी ने कहा था कि रामलुभाया तो सबसे बड़ा कामवाला है, उसको भी 21 दिये दे आना.”
“वाह! राम जी की कृपा का क्या कहना!” मन में सोचा और बोला-
“रामरखी, तेरे राम जी ने तेरे विश्वास की लाज रख ली. अब तो हमारी दिवाली भी चुपड़ी हो जाएगी और चमकदार भी!”
“राम जी की कृपा सब पर ऐसे ही बरसती रहे, मैं अभी मिठाई बनाकर लाती हूं.” अंदर जाते-जाते बोल गई.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244