कविता

मैं दीप की ज्योति हूं

सौंदर्य के गंगाजल में,
मैं खुशियां बांट देता हूं।
खुद जलकर भी सदा,
मैं रूप सजा देता हूं।
दुःख में और सुख में
मैं सदा कांति को फैलाता हूं।
जीवन के आलोक में,
मैं तम को हरा देता हूं।
घोर अंधेरी कालीमां में,
मैं जुगनू सम तम हर लेता हूं।
एक होकर अनेकों में,
मैं नव प्राण रस फूंक देता हूं।
मंगल बेला में मंगल गीत गाकर,
मैं इतिहास नया रच देता हूं।
जीवन का पथ दिखलाता हूं।
मैं विजयपथ सिखलाता  हूं।
मुसीबतों की सांसों में,
मैं नव प्राणों को फूंक देता हूं।
उम्मीदों के चिरागों में,
मैं रश्मियों को फैलाता हूं।
वेदना के वक्र को,
मैं अंशुओं से खोल लेता हूं।
मंदिरों की आरती की थाल में,
मैं हरबार सजा झूम लेता हूं।
घर-आंगन, खेत-मुंडेर या राह के द्वार पर,
मैं अपनी आभा लिए कई बार जला हूं।
बुझे हुए सपनों को साकार रूप दे देता हूं,
मैं उनके प्राणों का नवजीवनदान हूं।
वेदनाओं को चीर देती,
मैं दीप की ज्योति हूं।
रोशनी की आभा में,
मैं गोधूलि की नदी हूं।
नागिन सी निशा में ,
मैं मणियों का द्युती हूं।
बाती और लौ कि रहीं मेरी संगीनी,
मैं सुई और धागे की फूलों वाला हार हूं।
अनजान , अजनबी के राह में,
मैं तुम्हारी दृष्टि की  सहचरी हूं।
भीगा दूं सबका तन-मन,
मैं रोशनी की बरसात हूं।
चिर अधेरी रजनी का गहरा मेरा नाता है।
बुझे हुए चेहरों का मुस्कुराना,
अंदाज मेरा अनोखा है।
मिटा दूं मैं भेद सबका,
सब एक मेरी नजर में हैं।
जगमग करती दीपज्योति,
मैं अवनी की अवली हूं।
ओज, आभा में चमकती,
मैं सविता की बेटी हूं।
जीवन में मुरझाए चेहरों पर,
मैं रजत कोणों का गुलदस्ता हूं।
गमगीन दुःख की परछाई पर
मैं सदा सुहासिनी हूं।
दीपावली की इस रोशनी में ,
क्यों न मिट जाए यहां,
जग में तिमिर सारा।
— डॉ.कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773