हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : ठग को महाठग

“सेर को सवा सेर” यह लोकोक्ति अब पुरानी हो गयी है। अब एक नयी कहावत बनी है- “ठग को महाठग”। जो कोई अपनी बातों के जाल में फँसाकर भोले-भाले लोगों का माल हड़प लेता है, उसे ठग कहते हैं, परन्तु जो ठगों को भी ठग लेता है, उसे महाठग कहा जाता है।
जी हाँ, आप सही समझे। मैं सुकेश चन्द्रशेखर और अरविन्द केजरीवाल की बात कर रहा हूँ। पहला जहाँ ठग है, तो दूसरा महाठग है।
पहले सुकेश चन्द्रशेखर की बात करें। उसने एक पूर्व मुख्यमंत्री का पोता होने का झाँसा देकर कई लोगों के (ग़ैरक़ानूनी) काम कराने का वायदा करके उनसे करोडों रुपये ठग लिये थे। ठगे गये लोग बेचारे कहीं शिकायत भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि उनका ठगा गया धन भी काला था।
ठगी से प्राप्त इस धन का सदुपयोग सुकेश चन्द्रशेखर ने बॉलीवुड की हीरोइनों को पटाने में किया और कई को ठगा भी। फिर उसकी शिकायतें भी हुईं, तो एक दिन धर लिया गया।
लेकिन उससे पहले ही उसे केजरीवाल के रूप में एक बड़ा ठग मिल गया, जिसने उसे झाँसा दिया कि उसे अपनी झाड़ू पार्टी का नेता बना देगा और उसे पिछले दरवाज़े से राज्य सभा में घुसा देगा। बेचारा ठग उस महाठग के जाल में फँस गया और ठगा गया। ठगी की रक़म भी कोई छोटी-मोटी नहीं, बल्कि पूरे पचास करोड़ है। कट्टर ईमानदार महाठग के लिए यह राशि भी कम है।
लोगों को ठगना एक कला है, तो ठगों को ठगना उससे बड़ी कला है। महाठग इसमें पारंगत हैं।
*– बीजू ब्रजवासी*
कार्तिक पूर्णिमा, सं. २०७९ वि. (८ नवम्बर, २०२२)