गज़ल
खुली हवा का दालान नहीं मिला
रहने को ऐसा मकान नहीं मिला
घूम लिया तेरा यही सारा शहर
कोई भी यहाँ इंसान नहीं मिला
खप गया वह सारी ज़िंदगी यारों
फिर भी देख उसे सम्मान नहीं मिला
बुजदिली जिसकी नस-नस में भरी
वह जोश भरा आह्वान नहीं मिला
पैसों के लिए दौड़ रहा आदमी
फिर भी उसे इत्मिनान नहीं मिला
आ सके उजाला भीतर तक यारों
कहीं ऐसा रोशनदान नहीं मिला
कर सके रमेश के पूरे हर ख़्वाब
उसे ख़्वाब भरा अरमान नहीं मिला