कविता

क्या कही खो गया है मेरा बचपन

क्या कही खो गया है मेरा बचपन,
घेरा मुझे जिमेदारियो ने ,और बंध गया ये अनोखा सा बंधन
जाती हुई जिन्दगी सीखा रही जीने का एक नया ढंग
पा रहा है सब, जो चाहता था ये बावरा सा मन
फिर क्यों भटक रहा , मेरा ये अन्तर्मन
क्या कही खो गया है मेरा बचपन……?

है छाई हुई, दुनिया मे ये कौन सा भ्रम
फिर भी सीख रही हू, जीवन मे रहने का ढंग
बहुत मुशिकलो से भर गया है ये जीवन
अब तो काटो से भी ज्यादा चुभता है ये व्यंग
क्या कही खो गया है मेरा बचपन……?

छूकर कर हृदय को जाती ये निष्ठूर पवन
मिल नही रहा इसे भी शायद अपनापन
जी चाहता है लौट जाऊ और कर दू सब अर्पण
रूठ गया है कही तो मेरा ये निश्छल मन
क्या कही खो गया है मेरा बचपन…..?

नेहा त्रिपाठी

हिंदी शिक्षिका न्यू दिल्ली