कविता

कोहरा

रात घनेरी अंधकार का साया
ठंड में सजी ठंडक की छाया
प्रकृति  के गोद में कोहरा समाई
जाड़े की जागीर है अब आई

धरती ओढ़ कोहरे की चादर
सफेदी की हो रही है  आदर
कायनात में धुन्ध का है पाया
सड़कों पे अंन्धकार है   आया

गली मुहल्ले हो या हो मैदान
धुँआँ धुँआँ का है    वरदान
हाथ को हाथ नहीं दीख रहा है
जीव जन्तु ठंडक से खीझ रहा है

जब भी आता है ठंडक का मौसम
कोहरा प्रकृति का बना है हमदम
पहाड़ी पे सफेद चॉदी बिछवाई
कितना सुन्दर ये दृश्य है   लाई

सड़कों पे छा जाता है अंधकार
यातायात का हुआ      बंटाधार
दुर्घटना की दावत ये है      देता
बेसमय में मौत के गले में ले जाता

सँभल कर पथ पर चलना भाई
मौत की कुहरा है बिसात बिछाई
सूरज को नभ पे आ जाने    दो
यात्रा को आगे ले जाने       दो

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088