लघुकथा- आखिर क्यों ?
सौतेली माँ के दुर्व्यवहार की पीड़ा झेलती किरण एक शहर में ससुराल आई। सीधा-सादा पति तो मिला; पर सास-ननद की एक खतरनाक जोड़ी से उसका पाला पड़ा। वैसे पति से कोई शिकायत नहीं थी; क्योंकि बचपन में उसने पिता नाम का एक पुरुष देखा था। ससुराल में मिली गरीबी की दंश से बचने के लिए किरण दूसरे के घर काम करने जाने लगी।
फिर यहाँ मालकिन रूपी एक विषैली औरत की फुँकार सुनने को मिलने लगी- ‘आओ महारानी। अभी तुम्हारा समय हुआ। देखो, अभी कितना काम पड़ा। कौन करेगा यह सब ? पेमेंट किसका लेती हो आखिर ? एडवांस ही एडवांस चलता है तुम्हारा।’ किरण एक शब्द नहीं बोली। चुपचाप अपने काम लग गयी।
उसे समय का पता ही नहीं चला। रात हो गयी। आठ-साढ़े आठ हो गया। घर लौटते वक्त मालकिन ने आखिर सुना ही दिया- ‘अगर आना होगा तुम्हें, तो सुबह छः बजे आ जाना; वरना कहीं और जगह काम देख लेना।’ फटाक…. से दरवाजे की आवाज किरण के कानों पर पड़ी।
अपने घर पहुँचते तक अंतरात्मा से घायल किरण असमंजस में पड़ गयी। उसके अंदर एक ही बात चल रही थी कि नारी ही नारी का शोषण क्यों करती है ? आखिर क्यों… आखिर क्यों…?
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”