कविता

मन बावरा

मन मेरा क्यूँ हुआ बावरा
जब से उनकी दीदार हुई
मन ने मन की नैनों से देखा
प्यार में उनसे  आँखें चार हुई

ना घर का पता था उनसे पूछा
ना अता पता का हुआ व्यापार
कैसे प्रेम पत्र उन तक पहुँचाऊँ
प्रेम पत्र में प्रेम इजहार     हुई

रे बदरा जरा ढूँढ के उन्हें लाना
मोहब्बत में विरह तन जलता है
रे पूर्वा जरा  पता बतलाना
प्यार में पागल मन   पलता है

ढुँढ़ रही है नयन हमारी उन्हें
जिनकी चेहरे से हमें प्यार हुआ
दुल्हन सपनों में उन्हें बना दूँ
जिनकी मन से प्यार इजहार हुआ

जा री पपिहरा मत दो हमें ताना
आ जाने दो हमदम को द्वारे
गले लगा लूँ प्यार से उनको
वक्त की पाशा पलट जाने दो प्यारे

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088