कविता

बत्तीस दांतों के बीच

भारत भीतर ही है बहुत सारे ऐसे,
पर्वतराज, हिमालय, पहाड़, श्रृंखला ।
नैतिकता ही है भारतीयों का,
अनेकता में एकता विशेषता ।
हमेशा सफल रहते हैं भारतीय,
जीवन की हरियाली और रास्ता ।
कभी खत्म ना होने वाली,
खुशहाली और मंगल यात्रा ।
सिर कभी झुका नहीं सकते,
बेशक हम कटा सकते हैं ।
वीरगति प्राप्त करके भी,
अपनी सभ्यता बचा सकते हैं ।
वास्तव में देखा जाए…,
एक उदाहरण लिया जाए ।
बत्तीस दांतों के बीच जीव का आंट कितना ।
जीव को हर तरह की स्वाद कांट छांट कितना ।।
— मनोज शाह ‘मानस’

मनोज शाह 'मानस'

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