मुक्तक/दोहा

मुक्तक

नंगा क्या नहाये क्या निचोड़े, सोचता खुद,
भूखा क्या खाये क्या खिलाये, सोचता खुद।
माँगते रब से, कुछ आपदा मुल्क में आये कहीं,
राहत के नाम पर लूट लूँ सब, सोचता खुद।
मुल्क अपना या पड़ोसी, कुछ तो करो,
आपदा में अवसर तलाशो, कुछ तो करो।
तुर्की और सीरिया भूकम्प से पीड़ित हुये,
इमदाद के नाम पर चन्दा, कुछ तो करो।
— डॉ अ कीर्तिवर्द्धन