कहानी

एक बोझा धान

चम्पा देवी दोपहर को थाली में भात लेकर खाने के वास्ते आँगन निकलती है। थाली में भात कम मांड़ ज्यादा है। मांड़ में दो हरी मिर्च मछली की भाँति तैर रही है। आँगन के धूप में बैठकर सबसे पहले मिर्च को दाँत से कुतरती है। फिर थाली उठाकर मांड़ घट-घट पी जाती है। फिर मिर्च को कुतर कर एक मुँह भात उठा लेती है। बूढ़ी गाय जिस तरह घास को धीरे-धीरे चबाती हैं। ठीक उसी प्रकार चम्पा भात को धीरे-धीरे चबा रही है। तभी उनकी नजर गाय-बैल की ओर जाती है, जो पुआल के छोटे-छोटे टुकड़ों को जीभ से चाट-चाट कर खा रहे हैं। चम्पा की आँखें भर आयी। दुःख भरी नजरों से पुआल की ढेर की ओर देखती हैं। जहाँ दो-तीन पुआल का गांठ ही शेष है। और घर में चावल भी कल सुबह तक का ही है। अब क्या करूँ? चावल किनसे उधार लँू? गाय-बैल के वास्ते कौन पुआल देगा? किनसे मांगू? किसी के पास ज्यादा नहीं है। यह सोचती खाना खा रही है। अचानक याद आयी, खेत! हाँ खेत में धान भी पक गये हैं। यदि खेत से एक बोझा धान काट लाऊँ। तब गाय-बैल भी भूखा नहीं रहेंगे और हम भी। यह विचार आते ही चम्पा जल्दी-जल्दी खाना खा लेती है। फिर गाय-बैल को मांड़-पानी पीलाने के बाद शेष पुआल देकर धान काटने खेत चली जाती है। खेत पहुँचते ही दूसरे खेत में धान काट रही औरतें घर जाने के वास्ते मेंड़ में खड़ी होकर एक-दूसरे को पुकार रहे हैं। वे आपस में बातें कर रहे हैं, ‘‘चलो, जल्दी घर चलो, बाँसवन में करीब सौ हाथी आये हैं। कल साँझ होने से पहले ही खेत में धान खाने उतर गये थे।’’

‘‘हे गणेश ठाकुर! जिधर हैं, उधर ही रहना। मैं हाथ जोड़ के प्रमाण करती हूँ।’’ एक उम्रदराज औरत विनती करती है।

‘‘चम्पा दीदी, तुम अभी धान काटने आई हो, जानती नहीं हो कल बाँसवन के सामने वाले खेत में औरतें धान काट ही रही थीं। और हाथी का झंुड वन से बाहर निकल गये थे। सब अपना-अपना सामान छोड़कर भाग गये थे। इसलिए हम सब घर जा रहे हैं। तुम भी जल्दी चलो, कल सुबह आकर काटना।’’ पड़ोसी चंदा देवी कहती है।

‘‘बहन, घर में चावल केवल कल सुबह तक का है। ख़ैर, चावल तो किसी से उधार भी ले सकती हूँ। लेकिन चावल से अधिक चिंता पुआल की है। यदि मैं अभी धान काट के नहीं ले जाती हूँ तो गाय-बैल रात भर भूखे रहेंगे। घर में पुआल का एक भी गांठ शेष नहीं है।’’

‘‘चम्पा दीदी, यही स्थिति मेरे घर की है। चार दिन से गाय-बैल को पेट भर पुआल नहीं दे रही हूँ। दिन-रात में केवल दो ही गांठ और माँड़-पानी देकर रखी हूँ। गाय-बैल मुझे देखते ही उंउंउं, उं, उंउंउंउंउं……………. उंउंउं उंमाँ, उंउं उंमाँ……… करते हैं। मुन्ना के दूध पीने की ज़िद पर आज सुबह जब दूध दुहने गई, तब थन से सेर भर दूध नहीं निकला। किंतु आश्चर्य की बात यह है कि बछड़ा भी थन से मुँह हटा लिया। यह देख मैं और मुन्ना के बाबा सुबह ही धान काटने आ गये थे। मुन्ना के बाबा दोपहर का भात खा लिये और एक बोझा धान लेकर घर चले गये।’’

‘‘कल अलका के बाबा के साथ सुबह ही आयेंगे। घर में न तेल है, न नमक, न हल्दी, न जीरा, न धनिया और न ही चीनी…….। एक सप्ताह से मिर्च और प्याज के सहारे खा रहे हैं। मिर्च को कुतरते ही आँखों से आँसू आ जाते हैं। सुशवाते हुए भात को जल्दी, जल्दी, ज्यादा-से-जल्दा ठूँस लेते हैं। ताकि पेट भरे। आज इसीलिए अलका के बाबा मूला साग़ और बीज के लिए रखा हुआ अदरक को लेकर बाजार गये हैं।’’

‘‘दीदी, हम सब केवल दूसरों की थाली सजाने के वास्ते दिन-रात मेहनत करते हैं। अपनी थाली में अधिकत्तर माँड़ भात के साथ नमक-मिर्च और प्याज फाड़ा ही नसीब है।’’ बोलती चंदा की आँखें भर आयी।

‘‘चंदा, तुम अपना सामान इकट्ठा करो, तब तक मैं एक बोझा धान काट लेती हूँ। राजा साहब के खेत की औरतें भी नहीं गयी हैं। केवल दो-चार ही औरतें खड़ी हुई हैं। बाकी खेत में धान काट ही रही हैं।’’

‘‘दीदी, मैं थक गई हूँ, फिर भी सहायता कर देती हूँ। तुम जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ।’’

‘‘तुम कितनी अच्छी हो चंदा। आज कल अपनी बहन भी इतनी संवेदना नहीं दिखाती है। ईश्वर तुम्हारे परिवार को सुखी रखे! तुम्हारे परिवार पर किसी की नजर न लगे…………….!’’

‘‘दीदी, तुम भी बहुत अच्छी हो। क्या तुम भूल गई? धान की रोपाई के समय मेरे खेत की रोपाई करने में सहायता की थी।’’

‘‘अच्छा! तुम्हें याद है।’’

‘‘मैं कैसे भूल सकती हूँ दीदी?’’

‘‘मैंने केवल उस दिन बड़ी दीदी होने का फर्ज़ निभाई थी। क्योंकि तू उस समय बीमार थी। फिर भी दवा खाकर खेत आती थी। ये भी याद करो, उस दिन मेरे खेत की रोपाई जल्दी खत्म हो गई थी।’’

‘‘आज मैं छोटी बहन होने का फर्ज़ अदा कर रही हूँ।’’

‘‘खै़र, वह सब छोड़ो, एक बोझा धान हो जायेगा। अब जल्दी घर की ओर चलते हैं। वह देखो, राजा साबह के खेत की औरतें भी अपना-अपना सामान इकट्ठा करने लगी हैं।’’

‘‘ठीक है दीदी।’’ कहती चंदा भी चम्पा को धान का बोझा बनाने में मदद करती है।

चम्पा सिर में एक बोझा धान उठाकर चंदा के साथ चल पड़ती है। नाला पार करती है कि बाँसवन की ओर से बम फोड़ने और नगाढ़े की आवाज आती है। दोनों डर जाती हैं। चंदा के हाथ में कुछ सामान हैं। इसलिए चम्पा को जल्दी-जल्दी चलने को कहती हुई आगे बढ़ जाती है। जब पीछे मुड़कर देखती है तो चम्पा काफी पीछे ही रह गई है। यह देख चंदा फिर से वापस लौटकर चम्पा को पैर जल्दी-जल्दी बढ़ाने की आग्रह करती है। खेत में धान काट रही औरतें चिल्लाती हुई, गिरते-पड़ते घर की ओर भाग रही हैं। उन्हें देखकर चम्पा का दम घुटने लगा। किंतु किसी प्रकार घर सही सलामत पहुँच जाती है।

‘‘हाथी का झुंड धीरज और अंकित के खेत में पहुँच चुके हैं।’’ एक किसान कहता है।

‘‘मैं कुछ देर पहले धीरज की पत्नी चम्पा को खेत में धान काटते हुए देखता था।’’ दूसरा किसान कहता है।

‘‘क्या?’’ चंदा के पति अंकित कहता है।

‘‘हाँ दादा! और साथ में चंदा भाभी भी थी।‘‘ एक लड़का कहता है।

‘‘क्या? क्या?’’

‘‘हाँ दादा! हाँ! आज मैं नाला के इस पार वाले खेत का धान ला रहा था। बैलगाड़ी में धान लाद करके बैल को लाने के वास्ते नाला में उतरा था। तब मैं साथ में भाभी को चम्पा भाभी के खेत में धान काटते हुए देखा था।’’

दोनों का खेत नाला के इस पार और उस पार हैं। अगहन के महीने में नाला के दोनों तरफ घास होते हैं, जहाँ गाय-बैल चरने उतर जाते हैं।

‘‘क्या हुआ मुन्ना के बाबा? किसकी बात कर रहे हैं।’’ चंदा पीछे से बोलती हैं।

‘‘तू कहाँ थी? मर सोना!’’

‘‘खेत से आकर मुन्ना को दूध पीला रही थी। तुम मुन्ना को घर में छोड़ कर कहाँ चले गए थे। मुन्ना रो रहा था।’’

‘‘बाहर हाथी आया, हाथी आया……..कहकर चिल्ला रहे थे। मैं हाथी का नाम सुनकर बाहर निकला, तब पता चला कि हमारे खेत में हाथी का झंुड आ गया है। तभी तुम्हारी चिंता होने लगी। और चम्पा भाभी…………………………।’’

‘‘हाँ, मैं भी साथ में थी…………………………………।’’

‘‘अंकित तुम्हारे पास वन विभाग का नम्बर हैं क्या? यदि है तो फोन करो, वरना आज तुम्हारा ही नहीं, हम सभी के खेत को माड़ा (पैरों से रौंदना) देकर चले जायेंगे। हम सब बर्बाद हो जायेंगे। सौ के आस-पास की संख्या में हाथी का झंुड है।’’ मेघनाथ हांफता हुआ कहता है।

‘‘हाँ, हाँ, मैं अभी करता हूँ दादा। पिछले बार ब्लॉक घेराव करने गये थे, तब मिला था।’’ अंकित कहता हुआ फोन लगाता है। फोन रिंग भी हुआ, पर रिसीव नहीं किये। आठ-दस बार रिंग किया, फिर भी रिसीव नहीं किये।

‘‘यदि हम सब इस तरह से हाथ पे हाथ धरे रहे तो हाथी निश्चय ही खेत को माड़ा देकर चले जायेंगे।’’ मेघनाथ

‘‘तो हम क्या करें? मरने भी तो नहीं जा सकते हैं, खाली हाथ।’’ तीसरा किसान कहता है।

‘‘भूखे मरने से अच्छा है कि गणेश ठाकुर के सूँड और पैर से कुचलकर मरे। कम-से-कम अख़बार के जरिये वन विभाग और सरकार तक ये समाचार पहुँचे कि वन विभाग की भ्रष्ट नीति से विवश किसान हाथी से अपने खेत की रक्षा करते मारे गए। तुमको खाली हाथ जाने कौन कह रहा है? साइकिल का टायर जलायेंगे और नगाढ़े बजायेंगे। साथ में मशाल और भाल भी लेकर चलेंगे। जिससे हाथी को भागाया जा सकता है।’’

‘‘लेकिन एक सांड हाथी है, जो नगाढ़े की आवाज और आग से भी नहीं डरता है।’’

‘‘तुम यदि उतना ही डरते हो तो तुम मत जाओ। हम सब उनके सामने क्यों जायेंगे। दूर से ही भागाने की कोशिश करेंगे। क्या कहते हो आप सब?’’

‘‘हाँ, हाँ, हाँ…..’’ सभी किसान कह उठते हैं। फिर तैयारी में जुट जाते हैं। तब तक धीरज और बाकी किसान भी बाजार से आ जाते हैं। अंकित सभी किसानों को सारी बात बता देता है। धीरज सुनने के बाद ही घर से भाल निकालकर तत्काल सभी किसानों को चलने का आग्रह करता है। किसानों का हिम्मत रंग लाती है। किंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी। हाथियों का झुंड खेतों को पैरों से रौंद चुके थे।

चिंता से सभी किसान रात भर सोये नहीं, भोर होते ही खेत चले गए, जहाँ सभी के खेतों का धान बर्बाद हो चुका था। हाथियों ने आधा धान को खाकर और आधा को पैरों से रौंद कर चले गए हैं। किसानिन खेत में बिलख-बिलख कर रोने लगी। सब से ज्यादा चम्पा बिलख रही है। क्योंकि इनके सारे खेत को हाथी माड़ा देकर चले गए हैं। चम्पा के घर में मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है।

मैट्रिक पास अंकित किसानों की सहमति पर तत्काल बीडीओ के नाम एक आवेदन तैयार करता है। जिसमें लिखा है, ‘‘सौ हाथियों के झंुड ने हम सब के खेतों के धान को खाकर और पैर से कुचलकर नष्ट कर दिया है। हमारी स्थिति भूख से मरने जैसी हो गयी है। हमें अतिशीघ्र मुआवजा उपलब्ध कराया जाए। अन्यथा हमें बाल-बच्चा के साथ आत्महत्या करनी पड़ेगी। जिसका उत्तरदायित्व आप होंगे और वन विभाग। वन विभाग को अनेक बार फोन किया। किंतु रिसीव नहीं किये। साथ ही हमारे गाँव के प्रत्येक घर में हाथी भगाने का औजार उपलब्ध कराया जाए। अतः इस कार्य हेतु हम सब किसान आभारी रहेंगे। सधन्यवाद! विनती, हम सब किसान, ग्राम चोगा, पोस्ट जामुदाग, थाना सोनाहातू, जिला राँची, झारखंड।’’

धीरज और अंकित आगे आगे, उनके पीछे सारे किसान भाई ब्लॉक चले जाते हैं। दूर से ही ब्लॉक के बाहर की भीड़ को देखकर धीरज कहता है, ‘‘आज ब्लॉक में इतनी भीड़ क्यों है?’’

‘‘उनकी हुलिया से तो किसान ही लग रहे हैं। शायद खाद-बीज के वास्ते आये होंगे।’’ अंकित कहता है।

‘‘ये किसान किस गाँव के हैं।’’ एक युवा किसान कहता है।

‘‘मैं, कुछ किसानों को पहचानता हूँ, इनमें से कुछ जामुदाग के हैं, कुछ बारेन्दा के, कुछ एडमरहातू के……………….।’’ मेघनाथ कहता है।

‘‘वह देखो, जो सबसे आगे बीडीओ साहब के दफ्तर के सामने खड़ा है। उनके हाथ में भी आवेदन है।’’ अंकित कहता है।

मेघनाथ जामुदाग के संदीप से पूछा, ‘‘क्या भाई संदीप? यहाँ किस लिये आये हो?’’

‘‘क्या बताऊँ दादा? कल रात हाथियों ने मेरे घर का दीवाल तोड़कर सारा धान खा गये। पिछले साल खेत में हाथी का झुंड खाकर और पैर से कुचलकर बर्बाद कर दिया था। इसलिए इस साल पहले ही अध पके ही धान को काट कर घर लाया। लेकिन घर से खा ……..।’’ संदीप बोलता रोने लगा।

‘‘तब, तुम कहाँ था? और तुम्हारा परिवार?’’

‘‘जब हाथियों के आने की सूचना मिली। तब से गाँव के टूटा-फूटा पुराना घर में रहते हैं।’’

‘‘धान को भी वहीं रख लेता।’’

‘‘छोटा-छोटा दो कमरा है। एक में खाना बनाते हैं, जिसमें खाना खा लेने के बाद माता-पिता सोते हैं। दूसरा कमरा में बाल-बच्चा के साथ हम दोनों पति-पत्नी।’’

इतने में धीरज एक दूसरे किसान भाई से पूछता है, ‘‘आपलोग यहाँ किस लिए आये हैं?’’

‘‘क्या बताऊँ दादा? कल रात हाथियों ने खेत में लगी फसल को बर्बाद कर दिया है। हमारे गाँव में लहलहाते फूलगोभी, पत्तागोभी, आलू, मटर, पालक, धनिया, धान को आधा खाकर और आधा पैर से कुचलकर बर्बाद कर दिया है। मोटू का खलिहान का सारा धान खा गया है।’’ किसान कहता है।

‘‘हाथी कितने थे भाई?’’ धीरज फिर से कहता है।

‘‘करीब एक सौ।’’

‘‘क्या आपलोग वन विभाग को फोन किया था?’’ अंकित कहता है।

‘‘हाँ, मैंने ही किया था। एक बार नहीं आठ-दस बार किया था। पर रिसीव नहीं किये।’’

अंकित को उनकी बातों से पढ़ा-लिखा किसान लगता है। उम्र करीब पच्चीस-तीस होगी। अंकित फिर से कहता है, ‘‘तुम्हारा क्या नाम है भाई?’’

‘‘देबेन कुशवाहा’’

‘‘किस गाँव से।’’

‘‘बारेन्दा से। मैं आपको पहचान रहा हूँ। आपका गाँव शायद चोगा है।’’

‘‘हाँ, तुम ठीक पहचाने हो।’’

‘‘भाई देबेन, आपके गाँव में हाथी कब से आने लगा है।’’

‘‘यही दस-बारह साल से। और आपके गाँव में।’’

‘‘यही सात-आठ साल से आ रहे हैं। किंतु इधर दो साल से ज्यादा ही तंग कर रहे हैं। सारी फ़सल नष्ट कर देते हैं।’’

‘‘दादा! हमारे गाँव में हाथी और बंदर ने खेती करना मुश्किल कर दिया है। दिन-रात खेती की रखवाली करनी पड़ती है। यदि किसी दिन घर के सभी सदस्य कहीं चले जाते हैं तो सुबह ही दिन भर का खाना लेकर जाना पड़ता है। आधे घंटे में बंदर मटर और आलू के खेत को खाकर समाप्त कर डालते हैं। एक दिन दोपहर को मेरी आँख लग गयी थी। करीब एक घंटे में दो खेत के चना को उड़ा डाले थे। रात को हाथियों का झंुड और दिन में बंदर। बंदरों से खेती की रक्षा की जा सकती है। परंतु हाथी से खेतों की रक्षा करना तो कठिन है दादा।’’

‘‘कठिन तो है। पर वन विभाग का सहयोग मिलता तो संभव हो सकता है।’’

‘‘वन विभाग क्या ख़ाक सहयोग करेगा दादा। ये अपना पेट भरने में लगा है।’’

‘‘ भाई! तुम ये क्या बोल रहे हो?’’

‘‘दादा! मैं सही कह रहा हूँ। वन-पहाड़ की संरक्षण के वास्ते सरकार वन विभाग में नया पद सृजित करके बहाली कर रही है। गाँव के आम जनता वन से लकड़ी और पत्थर नहीं ला सकते हैं। किंतु आपको पता नहीं है। वन विभाग के आदमी एक ट्रैक्टर लकड़ी में पाँच सौ और एक टैªक्टर पत्थर में चार सौ लेते हैं। जब हाई कमान से जाँच का आदेश आता है। तब उनको पहले ही सूचना दी जाती है।’’

‘‘भाई! आज कल के ऑफिसर का क्या कहना?’’

‘‘मैं तो कहता हूँ कि देश में चारो ओर भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार कायम हो गया है। आप ने कभी सोचा है कि जंगली जानवर आज कल गाँव की ओर क्यों आ रहे हैं?’’

‘‘हाँ! वन-जंगल और पहाड़ को समाप्त किया जा रहा है, शायद इसलिए।’’

‘‘हाँ! आप बिल्कुल सही जा रहे हैं। जब पश्चिम बंगाल के अयोध्या पहाड़ से गुप्त सामान को निकालने के वास्ते पहाड़ खोदा जा रहा था। उस समय पहाड़ के चारो ओर सड़क और बिजली का जाल बनाये गये। तब से हाथियों का आना शुरू हुआ है। इससे पहले हेंसला पहाड़ कभी-कभी आते थे। वह भी दो-चार हाथी पहाड़ के सामने वाले खेत में धान खाकर चले जाते थे।’’

‘‘हाँ भाई! तुम सौ टके की बात कहे हो। वन, जंगल और पहाड़ के समाप्त होने पर भूख से जानवर गाँव की ओर आते हैं। शायद तुम को याद होगा। दो साल पहले मेरा गाँव एक भालू आया था। वह भालू एक बालक को पूरी तरह से घायल कर दिया था। वह बालक ग्यारह वर्ष का था। भोर के समय पिता के साथ खेत चला गया था। पिता बकरी और भैंसा को पेड़ के नीचे बाँध रहा था। बालक दिशा-मैदान के वास्ते डेढ़-दो सौ फु़ट दूर एक तलाब की ओर गया था। तभी बालक पर हमला कर दिया था। बालक के सिर का अगला हिस्सा को उड़ा दिया था। और दायां जंघा का मांस खा गया था…………………………….।’’

‘‘हाँ दादा, मुझे याद है। यह ख़बर पेपर में भी छपी थी। आप का गाँव के अलावे दूसरे गाँव के आदमी को भी घायल किया था।’’

‘‘बिल्कुल भाई। आप से मिलकर बहुत अच्छा लगा। आपका सोच बहुत अच्छा है। चलिए, बात तो होते रहेगी। वह देखो बीडीओ साहब की गाड़ी आ रही है।’’ कहता अंकित बीडीओ साहब के दफ्तर की ओर चला जाता है।

किसान नारा लगाते हैं, ‘‘बीडीओ साहब, हाय हाय हाय हाय, बीडीओ साहब, हाय हाय हाय हाय, बीडीओ साहब, हाय हाय हाय हाय, वन विभाग, हाय हाय हाय हाय, वन विभाग, हाय हाय हाय हाय, वन विभाग हाय हाय हाय हाय ……………………।’’

बीडीओ साहब दफ्तर के सामने गाड़ी से उतरकर कहता है, ‘‘आप सब शांत हो जाइये, जो भी कहनी है। आराम से दफ्तर में बैठकर कहिए। यदि अलग-अलग गाँव से हैं तो एक गाँव से एक बार दो-तीन किसान दफ्तर के अंदर आ जाइये।’’

किसान शांत हो जाते हैं। चोगा गाँव से अंकित, धीरज और मेघनाथ अंदर चला जाता है। बाकी किसान दरवाजा के सामने खड़ा रहते हैं। अंकित बीडीओ साहब के सामने आवेदन थमा देता है और पूरी घटना का जिक्र भी करता है। बीडीओ साहब सुनने के बाद हाथ में आवेदन उठाकर उच्चस्तरीय कारवाई करने का आश्वासन देते हैं। तभी धीरज कहता है, ‘‘आप पिछले वर्ष भी आश्वासन दिए थे। क्या मिला ठेंगा? आज तक न कर्मचारी गाँव विवरण लिखने गया और न हाथी भगाने का औजार ही मिला। अभी के अभी सभी किसान के खेत का विवरण लिखा जाए, अन्यथा!’’

‘‘अन्यथा!’’ बीडीओ साहब आश्चर्यचकित भाव से बोला।

‘‘हम सभी किसान यहीं सामूहिक आत्महत्या कर लेंगे। क्या भाई? क्या कहते हो?’’ धीरज दरवाजे के सामने जाकर बोलता है।

‘‘नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है। पिछले बार भी मैं आपके गाँव के खेतों का विवरण लिखने कर्मचारी को भेजा था और मुआवज़ा भी।’’

‘‘लेकिन हमारे पास कोई नहीं आया था और न मुआवज़ा ही मिला है।’’ धीरज फिर से बोलता है।

‘‘मुझे पता है, पीछले साल का मुआवज़ा किसे मिला है।’’ मेघनाथ बोलता है।

‘‘क्या बक रहा है?’’

‘‘हाँ! मैं बक नहीं रहा हूँ, सच बता रहा हूँ। गाँव में किसान का नेता बनता फिरता है। उसी के पास आपका कर्मचारी खेत का विवरण लिखने गया था।’’

‘‘राधेश्याम के पास।’’ अंकित बीच में बोलता है।

‘‘हाँ भाई! हाँ! राधेश्याम और कर्मचारी ने मिलकर मुआवज़ा उड़ा लिया है।’’

‘‘तुम्हें ये सब कैसे पता चला? और जब पता चला, तब हमें क्यों नहीं बताया?’’ धीरज क्रोधित भाव से बोला।

‘‘देवी मंडप में राधेश्याम और कर्मचारियों को देख, मैं उनके पास चला गया था। मैं कर्मचारी के हाथ में पड़ा रजिस्टर में किसानों का लिस्ट देख लिया था, जो राधेश्याम ने सभी किसानों के नाम के सामने रकवा भी लिखावा चुके थे। मुझे राधेश्याम ने कहा, यदि तुम यह बात किसी किसान के सामने बका तो तुझे जान से मार दूँगा। मैं डर गया। क्योंकि उनके खेत में गेहूँ की खेती की थी। जिसकी कटाई भी नहीं की थी। इसलिए …………………।’’

‘‘क्या बकवास कर रहा है? मैं चुप हूँ कि तुम बोलते जा रहा है। क्या सबूत है तुम्हारे पास?’’ कर्मचारी क्रोधित होकर बोलता है।

‘‘यदि आप सच बोल रहे हैं और मैं ही झूठ बोल रहा हूँ तो पिछले साल का रजिस्टर निकाल लीजिए। रजिस्टर में जिसका नाम दर्ज है। उसी किसान से पूछ लीजिए। दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।’’

‘‘तुम सभी किसानों का क्या भरोसा? साहब के सामने मुझे नीचा दिखाने के वास्ते झूठ भी तो बोल सकते हो।’’

‘‘आप सभी किसानों को मैं आश्वस्त करता हूँ कि कल सुबह ग्यारह बजे आपके गाँव दो कर्मचारी को भेजूँगा।’’ बीडीओ साहब आश्वासन देते हैं।

गाँव के देवी मंडप में सभी किसान खतियान और रसीद लेकर सुबह दस बजे इकट्ठा हो जाते हैं। दो कर्मचारी ठीक ग्यारह बजे पहुँच जाते हैं। कर्मचारी को समय से पहुँचने के वास्ते अंकित, धीरज, मेघनाथ और अन्य किसान धन्यवाद देते हैं। तभी एक कर्मचारी कहता है, ‘‘आप सभी किसानों का खेत यहाँ-वहाँ होगा। खेत जाने में परेशानी भी है। इसलिए आप सभी यहीं खेत में नुकसान हुई खेती का विवरण बोल दीजिए। हम रजिस्टर में लिख लेंगे। क्या कहते हो किसान भाई?’’

‘‘हाँ हाँ हाँ………..’’ किसानों की ओर से आवाज आती है।

एक कर्मचारी किसान का खतियान और रसीद जाँच करता है। दूसरा कर्मचारी रजिस्टर में किसानों का नाम, रकवा और नुकसान का प्रतिशत लिख रहा है। अनपढ़ किसान नुकसान हुए खेत के बारे बता कर आगे बढ़ जाता है। कर्मचारी क्या लिख रहा है? या नहीं? यह नहीं देखता है। सबसे अंत में मेघनाथ, धीरज और अंकित विवरण लिखाने आते हैं। मेघनाथ की आँखें बाज़ पक्षी की तरह है। उनकी नज़र रजिस्टर में लिख रहे किसानों के नाम, रकवा और नुकसान की प्रतिशत पर जाती है। नुकसान की प्रतिशत में कर्मचारी ने अधिकांश तीस-चालीस ही लिखा है। साठ-सत्तर प्रतिशत नुकसान केवल दो-चार किसानों का लिखा है। विवरण लिखवाने के वास्ते मेघनाथ चुपचाप अपना नाम बोल देता है। कर्मचारी नाम और रकवा लिखकर बोलता है, ‘‘तू ही हो न! जो साहब के सामने अधिक बड़बड़ा रहा था। साहब के सामने वह बताने की क्या आवश्यकता थी? तुम हम से अकेले में मिल लेता। सौ प्रतिशत नुकसान लिख देते। हमंे लिखने में क्या जाता है? तू बाद में दान-दक्षिणा कर देता।’’

‘‘सॉरी साहब, हम से गलती हो गयी। माफ कर दीजिए।’’ धीरज हाथ जोड़कर बोलता है।

‘‘धीरज, तू सॉरी क्यों बोलता है? सॉरी तो इनको बोलना चाहिए। देखो! रजिस्टर देखो! दो-चार किसान को छोड़कर सभी का नुकसान कैसे तीस-चालीस प्रतिशत लिखा है। क्या हम सब के खेत का नुकसान इतना ही हुआ है?’’ मेघनाथ क्रोधित भाव से बोलता है।

‘‘मेरे खेत में कुछ भी नहीं बचा है। गाय-बैल को खिलाने लायक पुआल भी नहीं है।’’ धीरज

‘‘तब! तुम्हारा तो सौ प्रतिशत नुकसान हुआ है।’’ मेघनाथ

‘‘ख़ाक! सौ प्रतिशत नुकसान हुआ है। तुम तीनों ब्लॉक में ज्यादा ही बकबक कर रहा था। लो मेघनाथ का दस प्रतिशत नुकसान लिख रहा हूँ। और तुम्हारा भी लिखूँगा। तुम मरियल किसान क्या कर लोगे?’’ कहता कर्मचारी लिखता है।

‘‘ऐसा मत कीजिए साहब, मैं आपके सामने हाथ जोड़ता हूँ। मेरा बाल-बच्चा भूखा मर जायेगा।’’ धीरज

‘‘मरेंगे तो मर जाने दो।’’ कर्मचारी

‘‘साहब, आप ऐसा मत बोलिए। सच में, धीरज के सभी खेतों को हाथियों का झुंड बर्बाद कर दिया है। यदि आपको विश्वास नहीं होता है तो चल के देख लीजिए।’’ अंकित

‘‘मंदिरों में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के वास्ते दूध, मिठाई, नारियल, फल और फूल आदि चढ़ाते हो। तब कहीं जाकर तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होती है। यह भी एक मंदिर ही है। यहाँ भी धान-दक्षिणा करोगे तो फल मिलेगा।’’ दूसरा कर्मचारी

‘‘साहब घर में रात को खाना बनाने का अन्न नहीं है। आपको क्या दूँगा?’’ धीरज

‘‘हम अपने लिए नहीं माँग रहे। सौ प्रतिशत नुकसान के वास्ते बड़े साहब को चढ़ावा देना पड़ता है। देखा नहीं, तुम्हारे द्वारा पिछले वर्ष का रजिस्टर निकालने की बात कहने पर भी चुप थे। और कर्मचारी को एक शब्द भी नहीं बोले।’’ दूसरा कर्मचारी

कर्मचारी को कुछ कहना, भैंस के आगे वीण बजाने के बाराबर है। इसलिए धीरज चुपचाप घर की राह ली। धीरज के पीछे पीछे अंकित भी घर की ओर चल पड़ा। मेघनाथ का शरीर गुस्सा से ताप रहा है। मन-ही-मन बड़बड़ता हुआ घर की ओर जा रहा है, ‘‘साला! कर्मचारी से लेकर बीडीओ तक भ्रष्टाचार से लिप्त हैं। मुझे लगता था कि राधेश्याम जैसे लोग और एक-दो कर्मचारी ही लोभी हैं। किंतु पूरा का पूरा सिस्टम ही लोभी है। सब किसान को लुटकर अपना पेट भोरने में लगे हैं। किसान को कोई देखने वाले नहीं हैं। सरकार बड़े-बड़े सभाओं में जनता के सामने कहती है, मैंने किसान के वास्ते अनाज, खाद और कीटनाशक उपलब्ध कराया। सिंचाई के वास्ते बोरिंग और खेती की बर्बादी होने पर मुआवज़ा के वास्ते ब्लॉक में फंड उपलब्ध कराया। और न जाने क्या? क्या?…………………….?’’

धीरज आँगन के खाट में लेट जाता है। चम्पा एक बोझा धान में से धान को हाथ-पैर से मसलकर सूखने दी थी। क्योंकि घर में रात को खाना बनाने के वास्ते मुट्ठी भर अन्न नहीं है, जो ढेंकी से कुटने के वास्ते टोकरी में उठा रही है। टोकरी में धान उठाने के बाद दूर से ही बोलती है, ‘‘मैं, अलका के साथ धान कुटने चंदा के घर जा रही हूँ। सूरज के लाल होते ही गाय-बैल को घर के अंदर बाँध दीजिएगा। बहुत अधिक ठंड है।’’

चम्पा के धान कुटते-कुटते सात-साढ़े सात बज जाता है। दूर से चम्पा को देखकर गाय-बैल ठंड से रम्भा रहे हैं।

‘‘क्या अलका के बाबा? इतनी रात हो गई। फिर भी आप गाय-बैल को अंदर नहीं किये।’’ बोलती चम्पा टोकरी को दरवाज़ा के सामने रखकर धीरज के पास आ जाती है। धीरज हाँ न उँ, कुछ नहीं बोला। तब चम्पा डर गयी, हिलाने-डुलाने लगी। फिर भी धीरज नहीं उठता है। धीरज के नहीं उठने पर रोती हुए चिल्लाती है, ‘‘हे राम! अलका के बाबा को क्या हो गया? अलका के बाबा को क्या हो गया?……………….।’’

चम्पा की रोने की आवाज सुनकर सभी पड़ोसी इकट्ठा हो जाते हैं। चंदा कहती है, ‘‘माँ-बेटी अभी तो मेरे घर से धान कुट कर आई है। अलका के बाबा को क्या हो गया?’’

मेघनाथ हाथ पकड़कर नाड़ी की तलाश करता है। परंतु नाड़ी कहीं नहीं मिलता है। तभी खड़ा होकर अंकित के कान में बोलता है, ‘‘धीरज मर चुका है। छू के देखो, शरीर काठ बन गया है।’’

अंकित की दुःखी आत्मा आज चिल्ला-चिल्ला कर कहती है, ‘‘आज अंकित की मृत्यु भ्रष्टाचार से लिप्त कर्मचारियों के कारण हुई है। उनके शरीर में कीड़े पड़े, वे दाने-दाने के वास्ते तड़पे, उन्हें नरक में भी जगह न मिले……………..।’’

— डॉ. मृत्युंजय कोईरी

 

डॉ. मृत्युंजय कोईरी

युवा कहानीकार द्वारा, कृष्णा यादव करम टोली (अहीर टोली) पो0 - मोराबादी थाना - लालापूर राँची, झारखंड-834008 चलभाष - 07903208238 07870757972 मेल- mritunjay03021992@gmail.com